केहू-केहू का होखे राम नाम के चरचा।
कहीं-कहीं चढ़ल बाटे घरे-घरे घरे-चरचा,
केहू-केहू का, जोड़ाता रात-दिन के खरचा।
घोंसरिये में निकलल बा घर-घर के लरछा,
केहू-केहू का, निकले आपसे में बरछा।
गाँवे-गाँवे बाँटल जाला खेतवे के परचा,
केहू-केहू का, मिले पिये के ना तरछा।
पूरबी का चूक से सोहात नइखे चरचा,
केहू-केहू का, जइसे धूकल जाला मरिचा।
‘मास्टर अजीज’ गावस रामनाम के चरचा,
केहू-केहू का, फाटल मिलत नइखे गमछा।
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मास्टर अजीज
अंक - 77 (26 अप्रैल 2016)
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