हाय! रे मनई - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

अंतरजाल के बजार मे बेजार भइल मनई। 
हर बार गूगल के शिकार भइल मनई॥ 
हर घरी टुकुर टुकुर वेभ के निहारत रहे 
छितिराइल वेभ मे बेकार भइल मनई॥ 

रक्तचाप बढ़ल जाता रोज रोज हिट नियन 
किडनी भी केहु से उधार लेही मनई॥ 
दुनिया के गाँव लेखा बुझे मे टटोले मे 
संवेदनों के अरथी निकार देही मनई॥ 

शुगर के होस नईखे मदिरा क संग साथ 
सर्च करत कुरसी निढाल भइल मनई। 
कफन भा फूल अब मेल से भेजाए लागल 
अपनन के बिकट सवाल भइल मनई॥ 

दिन बा कि रात बा कहाँ केकर साथ बा 
घरहीं मे बड़का बवाल भइल मनई॥ 
बोल चाल बंद अब गुमसुम रहे लागल 
बाबू खाति जिनगी जवाल भइल मनई॥ 

खुद मे सवाल अब जवाब ढूँढे निकसल त 
मन बा बेमन के कहांर भइल मनई॥ 
प्रीति के प्रतीति जब सूझात आ बुझात नाही 
सुभीति पर कहवाँ निसार भइल मनई॥ 

ढेरका के फेर मे अबेर ना सबेर देखे 
फजीरे से बइठल अधेर भइल मनई॥ 
वाइरस के फेरा मे घर से निकसुआ अस 
सर्वर लेखा ट्रैफिक से ढेर भइल मनई॥
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लेखक परिचय:-

मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 74 (05 अप्रैल 2016)

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