नोचत बकोटत
सिहासन तक पहुँची
कतनो कहुंचावे केहू
तनको जन कहुंची।
धर्म आ जात के
जपीं खूब माला
गरहा में जास बेरादर
आ आपन होखे भाला।
मानस के अस्तित्व
फेरू से खोजाता,
एकता आ अखंडता के
गज से गोजाता।
अबग बिकास के
गाड़ी बा नाधाईल
साझ के देवाल
स्वार्थ में भहराईल।
निमन पतोह के
बाटे अभिलाषा,
आवते बतुहार
होखे लागता तमाशा।
ढेर बारें ढाबुस जग में
भइया हम हईं बेंगुंची
लिखाई ऊहे नू
जहां ले बुद्धि पहुंची।
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लेखक परिचय:-
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238
अंक - 74 (05 अप्रैल 2016)
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