पोर-पोर टूटे बदनवाँ हो रामा
चइत महिनवाँ॥
नाया-नाया पेन्हि पेंड़ अंग छलकावे
मधुरस फुलवा से भौंरा छलकावे
हरसेला सभके परनवाँ हो रामा।
चइत महिनवाँ॥
जाने कहाँ सरसो के चुनरी हेराइल
तिसिया के खुतवा में घुँघरू छिंटाइल
गोहुँवा के खनके कँगनवाँ हो रामा।
चइत महिनवाँ॥
पुरुवा बयरिया ले आवे
भोरे-भोरे कगवा मुड़रेवा जगावे
मदमातल वा नयनवाँ हो रामा।
चइत महिनवाँ॥
धीरे-धीरे पौ फाटे उतरे किरिनिया
होत संहलौके पसरे चननिया
नीक लागे दुअरा अँगनवाँ हो रामा।
चइत महिनवाँ॥
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चन्द्रशेखर प्रसाद ‘परवाना’
अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)
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