फागुन आइल - राजीव उपाध्याय

फागुन आइल
बयार फगुनहटा के ले के
कि दिहलस अइगा
चइती के डेगे-डेगे।

एह बीच रंग उड़ी
उड़ी अबीर
अउरी धरती सजी
सोनहुला हँसुली ले के
जेवन हँसुली झरी
अँजूरी-अँजूरी
आङन-आङन
हर चउरा
कि देंहि 
फेर रोपनी कऽ सके।

एह बीच सम्मत जरी
अ उरी फूँकाई बहुत कुछ 
कि जरी होलिका
सवाल प्रह्लाद के ले के
बाकिर जे ना जरल
जे-जे देखल
ओकर लहुरा
हाथ तापे डेगे-डेगे।
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लेखक परिचय:-

पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश 
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र 
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in 
दूरभाष संख्या: 7503628659 
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 72 (22 मार्च 2016)

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