धनि-धनि ए सिया रउरी भाग

धनि-धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो। 
लिखि लिखि चिठिया नारद मुनि भेजे, विश्वामित्र पिठायो।

साजि बरात चले राजा दशरथ, 
जनकपुरी चलि आयो, राम वर पायो।
वनविरदा से बांस मंगायो, आनन माड़ो छवायो।

कंचन कलस धरतऽ बेदिअन परऽ,
जहाँ मानिक दीप जराए, राम वर पाए।

भए व्याह देव सब हरषत, सखि सब मंगल गाए,
राजा दशरथ द्रव्य लुटाए, राम वर पाए।
धनि -धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो।
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अज्ञात
अंक - 72 (22 मार्च 2016)

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