भीतर होखे पीर
होंठ पर प्यार भरल मुस्कान;
सम्हल के चल राही।
जल में बा उतरल मजबूरी
समय कसाई बा,
जाल नदी कs भीतर
हर पत्थर पर काई बा,
धार तेज बा पाँव न उखड़े
सिर पर बा सामान;
सम्हल के चल राही।
मरजादित तटबन्ध तोड़ के
बाहर आइल बा,
रात अन्हरिया से मिल के
पानी अगराइल बा,
साबुत रहे हिया में हिम्मत
उतरी भुइँ पर चान;
सम्हल के चल राही।
आसमान कs करिखा
मन कs भीतर मत उतरे,
कदम - कदम पर हरसिंगार बन
जगमग जोत झरे,
मरे कलुष कमजात सफर में
कुशल रहे ईमान;
सम्हल के चल राही।
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- अक्षय कुमार पांडेय
अंक - 63 (19 जनवरी 2016)
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