कहल जाला कि- 'होनहार वीरवान के होत चिकने पात।' कुछ लो जे भी एह भौतिक चीजन में कुछ नया कईले बा, या त ऊ 'खुराफाती' हऽ या त ऊ 'करामाती' हऽ । कुछ लो एमबीए क के 'सुंदर पिचाई' बनऽता त कुछ लो बे-डिग्री क 'मार्क जुकरबर्ग' भी बनऽता; बाकी जमाना कतनो आधुनिक हो जाव, लेकिन एक बात से इनकार नइखे कइल जा सकत कि, 'आज भी लो काम से अधिका चाम के तरजीह देले'।
खैर, आईं जा हमरा गाँवे जहाँ एगो खबर अदहन लेखा फफ़न रहल बा। पजरा-पड़ोस के जतना भी गाँव बाटे, सभका मुँह से एके बात- 'बाह रे भूअरा बाह!, जियो लाल!, चाऽबष-चाऽबष!, ..................|'
हमहू गाँवे अइनी, अवते-आवत छोट भाई हिंट मरलस कि 'भूअरा हिट हो गइल बा'। कुछ देर सोचनी फेर पूछनी- 'कवन भूअरा रे! का ओकरा एगो आँख नईखे! का ओकरा एगो कान नईखे! कि ओकरा एगो हइये नइखे?'
'साँझ क चलिहऽ पता चल जाई....'
एतनि कहिके हमार छोटका भाई सरक गइल ।
साँझ भइल कुल लइका सिवान में खेले-कूदे पहुँचल लो, हमहू चहूँपनी। कुछ घरि एने-ओने भइला के बाद अचानक एगो आवाज आईल 'पियऊ पातर हो जईबऽ........।'
पतंगबाज पतंग काट के छोड़ देता; पतंग गोल-गोल घूम रहल बे, क्रिकेटर आखिरी ओवर के गेना छोड़ि आ गुल्लीबाज गुड़ही में गुल्ली पियाऽवल छोड़के खड़ा होके थपरी बजावे लागल आ इधिर खूँटवारी आ झुरमूट के बीच से एकाएक अँकवारी में टेप लीहले एगो १२ बरिश के लइका निकलल। नियरा अइला पऽ ऊ लइका सभका आभार प्रकट करे लागल।
जब हमरा लगे आईल त हम सन्न रह गइनि काँहे से कि ई उहे 'भूअरा' हऽ जवन कि- 'छोट रहे नाक भल-भल चुवे, दउड़ के सभकर उहै छुवे।' अंकवारी में अपना आधुनिक यंत्र से अनहर छेड़खानी कइल; 'जुगाड़ी बाजा' के
धइले पूछलस- 'का हाल बा?'
'ठीक बा तनि इधिर देखऽतऽ । '
कहिके बड़ी गहिर नजर से ओकरा के ऊपर से नीचे देखनी, जब हमरा ई विश्वास हो गईल कि ई फंटुश फिलिम के 'पेंटल बाबा' न हउवे; त हम डटनि- 'ई का हव रे भाई? कईसन सूतरी, झिल्ली, चइली आ बोरसी खोंसले बाड़े?'
'तहरा ना बुझाई तू तऽ.......'
कहिके भूअरा अपना अगिला मेजबान तक पहुँचल।
हमार चेहरा के भाव उड़ गईल; अनचितले सूर्ता परल कि "कहीं एकरा ऊ बात नइखे न मालूम 'जब हमार बाबूजी के नवा मोबाइल रहे आ एक बेर फोन अईला पऽ घिरघराए लागल, त हम बाबूजी के मोबाइल लेके दुकानदार के पहुँचनी।' दुकानदार (मजाक में)- 'एकरा (मोबाइल के) ठंडा लागल बा; हैश बटाम के कसके दबावला पऽ एकर जाड़ भाग जाई।'घरे अईला पऽ ई जानकारी हम छोटका भाई के दीहनी। कुछ दिन बाद मोबाइल के उहै झंझट फेर भईल । ए बेरी हमार भाईसाब हमरा अनुपस्थिति में मोबाइलवा के 'तावा पऽ सेंकाई' करत रहले ताकि एकर (मोबाइल के) जाड़; जड़ से भाग जाव। तबतक बाबूजी देख लीहनि, त फेर 'का छोटका आ का बड़का' दूनो जनि के जमके कुटाई भइल रहे। बाकी त बदनामी हमरे न भईल? 'कहिं भूअरा के ई मैटर मालूम तऽ नईखे?' 'ना' 'ना' ऊ त छोट रहल होई; भऽ के जाने केहू बतवले होखो ?"
दिमाग में माथापच्ची चलत रहे, तबतक नजर पड़ल कि भूअरा ठीक अंपायर के पाछे खड़ा बा; आ ओकरा अविष्कार में 'करूआ तेल' पोता रहल बा। खिलाड़ी कऽ फरमाईश पऽ कबो 'खेदाड़ी' त कबो 'उफानी' के ट्यूनिंग करऽत भूअरा 'आरजे' की भूमिका मे लइकन कऽ हौसला बढ़ावत; हमरा मन के भा गइल ।
किरीन डूबे लागल, लौटानी समय 'भूअरा' से पूछनि- 'कऽ में पढ़त बाड़ऽ ?'
'पाँच में'
'हई बजवा बेचाई का ?'
(हम मजाक में पूछनि)
तऽ भूअरा तपाक से कहलस- 'धंधा कऽ बात घरे होला ।'
'ठीक बा भाई चलऽ तोरा घरे भी चलेब' कहिके कई फर्लांग आगे-आगे हम आ भूअरा सेकराहे, भूअरा के घरे चहुँपनी जा। भूअरा आपन सहेंजल बक्सा चौकी पऽ पटकलस आ तरह-तरह के डेमो देखावे लागल।
घाटा-नाफ़ा के कहाऊत अइसे दागे जइसे इहे 'शिव खेड़ा' के गुरु हऽ। मोबाइल, टीवी, सीडी इहा तक कि कम्प्यूटर के भी कुछ पार्टस भूअरा के डाबा में रहे।
अचानक ८ जीबी के चीप लिउकल तऽ पूछि लिहनी
'ए भूअर! ई ८ जीबी के चीपवा, कतना के परी ?'
'ए भूअर! ई ८ जीबी के चीपवा, कतना के परी ?'
'छबीस रुपिया के।'
(मासूम लेखा भूअरा ई जतवलस कि, तु आपन बाड़ऽ तऽ दे देत बानि; ना तऽ दोसर केहू के.........।)
हमरा खुशी के ठिकाना ना रहल। मने-मने गुनी कि बड़ा सेहते लहा देले बानि। दाम-दुकानी तय भइल। कइसहूँ रात बीतल। भोर होत-होत हम अपना हास्टल चहुँपनी। संगी-संघतियन संग मनचर्चा होखे लागल। बात-बात में मेमोरि के भी चर्चा भइल। सभ लो अधीर हो गईल 'सेकेंड हेंड सस्ता आ गारंटेड मेमोरि' खातिर। अब तऽ ई हाल हो गईल बा कि, घरे चहुँपला से पहिले 'भूअर भाई' के एडवाँस बुकिंग करावे के परऽता।
मेमोरि लियावल आ पेठावल इहो एगो दिनचर्या में शामिल बा।
काहैं से कि भूअरा जब 'तीन तेरह में' ५ पढ़े वाला लईका १५ में पढ़े वाला के पढ़ा रहल बा; तऽ बूझी कि ओकर भारत कऽ भविष्य में कतना योगदान रही।
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