नाच कांच तुरे तान जेकर राखे दुनिया मान - जनकदेव जनक

भिखारी ठाकूर अइसन बड़हन अदिमी रहल बाड़े जेकरा से जाने केतने लोगन के इयाद अउरी नेह-छोह लागल बा कहल मुसकील बा। बाकिर इहे इयाद अउरी नेह-छोह ओह आदिमी के विस्तार के बतावे वाला होखे ला। कुछ अइसने इयाद जनकदेव जी सोझा ले के आइल बानी।
- राजीव उपाध्याय
--------------------------------------------
नाच कांच तुरे तान जेकर राखे दुनिया मान. ई लोक उक्ति कहवां तक सांच बा जे भिखारी ठाकुर के नाच देखले होई, उहे समझ सकत बा. भिखारी ठाकुर के नाच कवनों जिनीस से कम ना रहे. जहवां आवे हजारन लोग के मुड़ीये दिखाई पड़े. हमरो सन 1969 में देखे के मउका मिलल रहे. जब उहां के नाच मंडली हमरा गांव सारन के बगलवाला गांव धर्मसर में आइल रहे. कहल जाला धर्मसर में महात्मा बुद्ध अपना शिष्यन के साथे आके बौद्ध धर्म के परचार कइले रहीं. खैर उ प्रसंग दोसर बा. नाच ओह गांव में एक रात खातिर आइल रहे. एकर खबर हमरा गांव में पहले से रहे. काहे कि भिखारी ठाकुर के नाच में हमरा गांव के लोहार घिनावन शर्मा ढोलक आ ताबला बजावस. एह से मुंहा मुंही नाच के खबर नदी के धारा में गिरल तेल नियर सगरों पसर जाव. नाच देखे खातिर हमार गांव टूट पड़ल रहे. नवहीं से लेके बुढ़ ,जवान तकले घर छोड़ के शामियाना के तरफ झटकत जात रहस. एह में हमहूं पीछे ना रहीं. अपना संघतियन के साथे बुढ़वन के पीछे पीछे लुकात छिपत जाये लगनीस. काहे कि चउथा-पांचवा में पढेवाला लईक के उमिर नाच देखे के वाला ना होला. बाकिर भिखारी बाबा के नाच के धुन, केहूं के पांव रोक ना पावे. अंजोरिया रात होखे भा अंधरिया, लोग नदी नाला फानत, कब्रिस्तान शमशान लांघत, बिना डर भय के उहां पहुंचे के फेर में रहे. नाच देखे के ललक में उमिर के बंधन टूट गइल रहे. जे भी पहले शामियाना के पास पहुंचल. मंच के आगे बइठे के कोशिश करे,ताकि सामने से नाच आ भिखारी ठाकुर के देख सको. जे भी गइल उहां कटहर के लासा नियर सट गइल. बाकिर कुछ मनबढ़ू आ लफुआ नवछेड़िया रहलेंस, ओकनी के डेग पहिले शामियाना से सटल राउटी के लगे पड़ल. उ राउटी के भीतर ताक झांक में लाग गइलेस. पेट्रोमैक्स के रोशनी में नहाइल शामियाना के आस पास अंजोर रहे. जेमें कुछ दबंग लोग ओकनी के हांक के शामियाना में करे, कुछ देर तक शांति के बाद फेरू ऊहे स्थिति हो जाव. ठसमठस भीड़ के कारन ठेला ठेली के आलम बेजोर रहे. कई बार तू-तू-मैं -मैं के बाद लातम जूतम के नउबत आ जाये. ‘हां ,हां शांत होई , शांत होई ..’के बीच मामला टल जाव. उपन्यास ‘सूत्रधार’ में संजीव जी के एगो बानगी ,‘नाच कांच है बात सांच है.’आइल बा.
कई गो नचनियां के नाचला के बाद भिखारी बाबा के देखे के सारथा पूरा भइल. गोर नार, लंब धड़ंग एको पुरनिया कलाकार मंच पर आइल. जवना के तन पर धोती मिरजई रहे. सिर पर पगड़ी बंधले आ हाथ में लाठी टेकले ठार भइल. सिर नवा के आ हाथ जोर के देखनिहारन के अभिनंदन कइलस. ओकरा बाद जे शामियाना के अंदर आ बाहर सन्नाटा पसर त बुझाइल कि निसबद रात के सन्नाटा ह. आंखियन के हजारन पुतली एकाएक भिखारी बाबा के ऊपर ठहर गइल. उनका एक एक बोल,हाव ,भाव आ भंगिमा पर लट्टू हो गइल. उहां के कमजोर काया से आवाज आइल,‘ रउरा सभे के सेवा में हाजिर बानी, पहिले कुछ सुनब लोग कि तमासा देखब लोग.’
एका एक कई तरह के आवाज शामियाना से उठे लागल. कहूं भजन सुने के त केहूं निरगुन सुने खातिर हल्ला गुल्ला करे लागल. केहूं उनुकर पूरबी सुने खातिर बेहाल रहे. सबसे जादा लोगन के मांग ‘बिदेसिया ’ पाट देखे के रहे. रह से बिदेसिया के शुरूआत भइल. ‘ केकरा से आग मांगी केकरा से पानी... ’
सभे जानत बा कि भोजपुरी के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के जन्म बिहार के सारण जिला के कुतुबपुर छपरा में सन 1887 में भइल रहे. उहां के भोजपुरी संस्कृति के सामाजिक सरोकरा के साथे अ़इसन गुंथनी कि अभिव्यक्ति के धारा ऊ भिखारी शैली बन गइल. ऊ अकेला अइसन कलाकार रहले, जे खुद क वि, गीतकार, नाटककार, निरदेशक, संगीतकार आ कुशल अभिनता रहस. ऊ अपना नाटकन में हरमेशा सूत्रधार के भूमिका में रहस. ओकरा माध्यम से चुटिला अंदाज में आपन बात कह जास. तवना पर लोग बाग बाग हो जाव. सरकार उहां के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित त कइले रहे. बाकिर बड़का साहित्यकार राहुल सांस्कृत्याण बाबा उहां के शेक्सपीयर त आचार्य शिवपूजन सहाय जी भारतेंदु हरिश्चंद्र के उपाधि देले रहीं. एह महानायक के निधन 10 जुलाई 1971 के कुतुबपुर में भइल रहे. बिहार सरकार सोनपुर छपरा मार्ग पर भिखारी चौक पर ‘भिखारी नाच मंडली’ के मुरती स्थापित कइले बिया.
भिखारी ठाकुर अपना रचनन में समाज के नया रूप पेस कइले बानी. समाज में चोर लेखा घुसल कुरीतियन , अबेवस्था आ स्त्रीयन के दुरदशा पर अपना तमाशा के माध्यम से जन जन में लोक चेतना जगावे के काम कइनी. जइसे बेटी बेचवन के धिक्कारत ‘बेटी वियोग’, नसइल मरदन के फटकारत ‘पिया नसइल’, ‘बिदेसिया’ में परदेसी पिया से दुर ओकरा परान पियारी के मन आ तन के पीड़ा , ‘गंगास्नान’ में महतारी के लसारत मुंहजोर पतोह के हाल, ‘गोबरघिचोर’ मेंं सामांतियन के बीच औरतन के तन मन मुक्ति के बात कइले बानीं. समाज में पुरूष वरचस्व के मान तुड़ के औरतन के मन मिजाज के पीड़ा सामने लावे में रचनाकार के जोर नइखे. खुद भिखारी औरत बन के अपना नाटकन में मेहरारूअन के मन के पीड़ा उजागर कइलें बानीं.
---------------------------------

लेखक परिचय:-

पता: सब्जी बगान लिलोरी पथरा झरिया,
पो. झरिया, जिला-धनबाद, झारखंड(भारत) पिन 828111,
मो. 09431730244



अंक - 61 (5 जनवरी 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.