ढोल मंजीरा खानी जंगल
बाज रहल बा
आबादी के मौन में
भारी कोलाहल बा
समय के माथ पs चिन्हासी
चिंता के लउके
घर के भीतर बाहर सगरो
राजनीति के हल्ला-गुल्ला
धरम कबड्डी खेल बनल बा
हिन्दू-मुस्लिम के रट मारत
दउरस पंडित-ज्ञानी मुल्ला
केहू जतन करे कुछ नाहीं
सब केहू बनल पनसोखा
ओका बोका तीन तड़ोका
मुचकाईं ईमान धरम के
हड्डी गुड्डी
आईं चलीं खेलल जाव
चेत कबड्डी चेत कबड्डी
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अलगे-अलगे दयरा में
डुगडुग्गी बाजे
अलगे-अलगे खेल तमासा
करतब होता
अपना आप से टकराहट बा
आपने धूरी पर सब केहू
नाच रहल बा
एको डेग के आगे बढल
लउकत नइखे
अलगे-अलगे मठाधीस आ
संत- महंथन के उपिटाइल
देख रहल बानीं हम सगरो
भोजपुरी माई के अंचरा
चेथड़ा-चेथड़ा भइल जाता
अधिकार के मांग के पुर्जा
उड़ल जाता
आपन -आपन कबरगाह के
अलगा-अलगा मुर्दा नियन
कब ले सकित रहल जाई?
अब कतना ले बाट जोहाई?
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सुनीं सुनीं देखीं हेने
खाईनी ठोंक पर
हरा बाजी लागल बाटे
के पटकाई
के केकरा पर चढ़ी
चलीं चलीं देखे
हे हे हे हे
हे हे हे हे
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लेखक परिचय:-
नाम - गुलरेज शहजाद
कवि एवं लेखक
चंपारण (बिहार)
E-mail:- gulrez300@gmail.com
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