नाम-गुन कऽ भेद- अभिषेक यादव

नाम-गुन कऽ भेद में करि तनिक विचार,

मुँह भइल बा चोखा अस बखरा ‘लूर’ अचार

होशिला जी मधुशाला में डालऽस रोज पङाव,
महंगू काका पनही टांकस गिर गईल बा भाव

जवाहिर के ठेकऽ ता उमिर एक सौ तीन,
राजा बाबू रोजहाई में काटऽ तारे दिन


रामनिहोरा सनकी-मैन देखते खूबे गारी,
बाबा तिलोकी जी घरे कुकूर झाँके दुआरी

जंगबहादुर घर में सूतस होते सांझ-अन्हार,
फकीरचंद के भट्टा चले एक, दूई नहिं चार

भइल मंगरुआ पैदा शनि अमावस दिन,
फौजी बाबा फरुहा लेके खोभऽतारे जमीन

‘आतुर वश कुकर्मा’ संतोषवा के ढंग,
भागमनी के लोग लईका छोङ देले बा संग

मनभरन से ऊब गइल पूरा गाँव-जवार,
सादा भाई के जिनगी हऽ जईसे चित्राहार

तेतरी काकी गूटर-गु के धइले बाङि राग,
चिखुरी के रास न आवे, तेलहन, बथुआ-साग


बनवारी के उङ गईल जिनगी के सभ पात,
पूछे मुसाफिर अभिषेक से बितवलऽकहाँ रात?


बंगाली जी करऽ ओझाई घूमलऽ ना बंगाल,
चिरागन क लगल चलिसा जाले रोज नेपाल

अमरजीत के खूब पदावंस लईका सुबह-शाम,
नन्दू कऽ माई यशोदा उनकर बाबू श्याम

भोला का भीतर-घौंसि मन में कलह क्लेष,
रामरुप मरजादा लांघस सतरंगी के भेष

भुङूक जी अपना गाँवे करऽतारे चुङकाहि,
सती-माई क धाम पऽ ता अब ओझाई

रामभरोसे खेती करंस पाँवे फटल बेवाई,
निरोगी के जान ना बांचल केतनो भईल दवाई

निरहू भाई भोजपुरी में करऽतारे राज,
‘अभिषेक’ अब का होई कइसे बाची ताज ?

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अंक - 53 (10 नवम्बर 2015)

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