आजु गाँवे हमरा बाटे पंचाइत,
कि मन हमार खुश नइखे
एगो मेहरी के मरदा बा विलाइत,
कि मन हमार खुश नइखे।
मेहरी के डाह फूँके मरदा कमाई से,
सास-ससुर काटऽतारे दिनवा जम्हाई से
जबकि करेले बूढ़ऊ शिकाइत:
कि मन हमार खुश नइखे।
साज-सिंगार छूटल; छूटल गोड़ रंगाई,
जीव चटकार केसे कही भऽ मंगाई?
ओकर बियाह भइल बाटे बिना साइत:
कि मन हमार खुश नइखे।
मन के भौंरा अब भऽ गइले तितरी,
अनमोल गहना उनका भइल बाड़े पीतरी
अउरी करेले बुढ़िया फेंकाइत:
कि मन हमार खुश नइखे।
रहे के न जाने के झट से पराय गइले,
अनबोल बूझी उनका खूँटा पऽ धराई गइले
हमरा लागेला मउगी बिया राईट:
कि मन हमार खुश नइखे।
आजु गाँवे हमरा बाटे पंचाइत,
कि मन हमार खुश नइखे।
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