कईके गवनवा - भिखारी ठाकुर

के गवनवा, भवनवा में छोडि के
अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ।

अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर-ढर
बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ।

गुलमा के नतिया, आवेला जब रतिया
तिल भर कल नाही परेला बलमुआ।

का कईनी चूकवा, कि छोडल मुलुकवा
कहल ना दिलवा के हलिया बलमुआ।

सांवली सुरतिया, सालत बाटे छतिया
में एको नाही पतिया भेजवल बलमुआ।

घर में अकेले बानी, ईश्वरजी राख पानी
चढ़ल जवानी माटी मिलेला बलमुआ।

ताक तानी चारू ओर, पिया आके कर सोर
लवटो अभागिन के भगिया बलमुआ।

कहत 'भिखारी' नाई, आस नइखे एको पाई 
हमरा से होखे के दीदार हो बलमुआ।
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अंक - 54 (17 नवम्बर 2015)

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक भिखारी ठाकुर और एक आज के गायक में कितना अंतर

    है भिखारी ठाकुर हमारी संस्कृति को बचाने वाले एक महान आत्मा थे तो वहीं आज के गायक समाज में गलत संदेश भेज रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. एक भिखारी ठाकुर और एक आज के गायक में कितना अंतर

    है भिखारी ठाकुर हमारी संस्कृति को बचाने वाले एक महान

    आत्मा थे तो वहीं आज के गायक समाज में गलत संदेश भेज रहे हैं

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