पराया घर के बेटी - जनकदेव जनक

संजू के शादी के दू बरीस बीत गइल रहे. अब उ एगो लक्ष्का के माई बन गइल रही. ओकरा बादों उनकरा घर में शांति ना रहे. हरमेशा सास-पतोह में झगड़ा होते रहे. उ इहे सोचत रहस कि कवन अइसन काम करस, जेकरा से उनुकर सास राधा आ ननद मुन्नी खुश हो सकस. सबसे बड़ा दुख उनुका तब होखे जब राधा से कुछों पूछला पर जबाव देस कि मुन्नी बबुनी चाहे जमाई बाबू से पूछ ल, उहे लोग तोहरा के ठीक से समुझा दिही कि का करे के बा कि नइखे करे के. 
एक दिन संजू घर के कपड़ा धोवत रही. ओकरा में उनका मरद संजय के कपड़ा भी रहे. साबुन घिसला से खिया के छोट हो गइल रहे. तब उ अपना पड़ोसी जमुना से एगो साबुन मंगवा लिहली,बाकिर जमुना से साबुन लेत उनकर ननद मुन्नी देख लिहली. इ घटना उनका खातिर महंगा पड़ल. मुन्नी अपना माई के कान फूंकदिहली. ई बात सुनते राधा बोल पड़ली,‘‘ अरे मुनिया, घर के सभे लोग मर गइल रल का रे कि तोर भऊजी जमुनवा से साबुन मंगवा लेलस हिअ. संजय के डय़ूटी से आवे दे तब एकर सहकल निकालत बानी..अबहीं से एकर पांव चौखट से पार होखे लागल त पता न बाद में का करी..़? ’’
रोज रोज के झगड़ा आ खोभसन से संजू के देह दुबरा के आधा हो गइल. चिंता आ फिकिर से उनुकर दिमाग हरमेशा गर्म रहे लागल. बार-बार एके बात दिमाग में आवे कि घर में कमाये वाला उनकरे पति संजय बाड़ेंन ,ओकरा बादों एह घर में उनकर कवनों मान सम्मान नइखे. काहे ना अपना मरद पर आपन अधिकार जता के दबाव बढ़ाई. हर माह उनुकर तन्खाह के पइसा हथिय़ा लिंही. तब सास -ननद के नकेल कसल जा सकेला. 
संजू के मरद संजय भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के पूर्वी झरिया क्षेत्र में एकाउंटेंट रहले. माई बाबू के काफी दुलरूआ रहस. हर माह उ आपन तन्खाह अपना माई के हाथ में देस. बाकिर एह माह त संजू उनुकरा पाकिट से तन्खाह निकल लेले रही. जब संजय के मालूम भइल त उनकर हाल सांप छुछुंदर लेखा हो गइल. माई उनुकर बार- बार पइसा मांगस. दो चार दिन बहाना मारले, बाकिर कब तकले. उ अपना माई के देखते कन्नी काट के निकल जास. एक तरफ माई के ममता रहे त दुसरा तरफ मेहरारू के पियार. घर में बढ़त तनाव से उनुका ऑफिस में भी काम करे में मन ना लागे.
एक सप्ताह बाद संजू अपना मरद संजय के 20 हजार रुपया देत कहली,‘‘ ई रुपिया घर खरच खातिर ह. माई के दे दिंही. बाकी रुपिया हमारा लगे रही. ’’
‘‘ठीक बा रुपिया राख,बाकिर बेहिसाब खरच मत करीह!’’
‘‘ जहवां खरच होता उहवां त बोलते नइखीं, उलटे हमरे पर चाप चढ़ावत बानीं,काहे ?’’ संजू सहजभाव से पूछली. 
‘‘ एह घर में के फिजूल खरच करत बाटे.’’ एकाएक आक्रोशित होत संजय बोल पड़ले. 
‘‘ चिल्लाई लोग मत, दिमाग पर काबू राखीं. हम पूछत बानी कि जमाई बाबू के घर दुआर बा कि ना, दू बरीस से एह घर में सरनारथी नियर काहे राखल गइल बानी. बेहिसाब खरच त ओही लोग पर होता. बोलीं, चुप काहे बानीं.’’ 
संजू के बात में दम रहे. एह से संजय अपना मेहरारू के सामने टीक ना पवले. चुप चाप हाथ में रुपिया लिहले उ बथानी गइलें. उहां उनुकर माई ना रहली. एह से रुपिया अपना बहिन मुन्नी के दे दिहलें. 
अब घर में जमाई बाबू राहुल आ मुन्नी के लेके झगड़ा होखे लागल. कबहूं ननद-भऊजाई लड़ पड़स त कबहीं सास पतोह के रगड़ा शुरू हो जाव. एहीं बीच संजू के कीनन एगो शीशा के गलास घर के सफाई के दौरान मुन्नी से फूट गइल. एकारा बाद ननद -भउजाई में जबरदस्त नोंक झोंक भइल. संजू मुन्नी के भिखारीन कह दिहली, ई बात राधा के मालूम हो गइल. ऊ अलगे संजू पर बरस पड़ली. 
‘‘ तोर अतना मजाल कि हमारा बेटी के भिखारीन बोल देले ह, उलटा सीधा हमरा बेटी के बोले वाला ते हईंस के? ’’ गुस्सा में सास राधा फट पड़ली. 
‘‘ ई घर हमार ह कवनों धरमशाला ना, हमार बोली लोग के ठीक नइखे लागत त इहां से उ अपना घर चल जाव..’’
‘‘हम अपना बेटी के राखब देखत बानी के निकालत बा ?’’
‘‘ केकरा बल पर राखेंम, ना जमाई बाबू कामत बानी ना ससुर जी, हरमेशा संजय के मुड़िये पर ठिकरा फोड़ाई का ?़ ’’
संजू के जबाब से राधा तिलमिला उठली. उनुकर बोलती बंद हो गइल. पागल कुतिया नियर भौंकत मुन्नी के साथे बथान के तरफ भाग गइली.
ऑफिस से अइला के बाद संजय के मन घर में ना लागल. उ अपना बथान में जा के बइठ गइलें. ओहीजा माल जाल के खियावत सोचे लगलें. पता ना एह घर में केकर नजर लाग गइल बाटे. हंसत खेलत जिनगी नरक बन गइल बा. संजू के बात से जहवां माई परेशान बिया, ओहीजा बहन के भी घर काटे दउड़ता. बाबू जी फेरू से फेरी के काम शुरू कर देले बानी. माथा पर कपड़ा के गठरी लेले गली कूची में घुमल फिरत बानीं. का करीं कुछ समझ में नइखे आवत. ओही टाइम मुन्नी आ गइलीं. भाई के उदास चेहरा देख के बोल पड़ली, ‘‘ भइया काहे मन मरले बाड़,ऑफिस में कवनों बात भइल बा का?’’ 
‘‘ना मुन्नी कवनों बात नइखें,अइसही बैइठल बानी.’’
‘‘ ना भइया, तू कुछ छुपावत बाड़, सांच सांच बताव. हमार किरिये ,जरूर कवनों बात बा.’’ मुन्नी अपना भाई पर अधिकार जमावत पूछ बइठली. 
‘‘का कहीं कहल जात नइखें, जानते बाड़ू राहुल बाबू के लेके घर में कोहराम मचल रहता. हम चाहत बानी कुछ दिन खातिर तू लोग अपना घर चल जइत..’’ अपना आत्मा के मार के संजय बहिन से ई बात जइसे बोलते रहस, तले उनुकर माई आ गइली आ लतारे लगली. 
‘‘ हम ना जननी कि तू हमारा कोखी से मेहरी के गुलाम जनम लेब. आरे निकालहीं के बा त बहिन के ना माई-बाबू के निकाल द,जेसे तोहरा मेहर के छाती ठंढ़ा हो जाव!’’
एह घटना के बाद मुन्नी अपना मरद के साथे धनबाद में रहे लगली. बीच में जब भी मउका मिले, माई- बाबू से मिले खातिर आ जास. आपन दुखम -सुखम सुना के फेरू लवट जास. एक दिन मुन्नी अपना माई से कहली, ‘‘ धनबाद वाली जमीन हमरा मिल जाइत त ओहमें घर बना लिहतीं, भाड़ा के मकान में रहल बड़ा कठिन बा. रोज कबहीं पानी खातिर त कबहीं बिजली खातिर मकान मालकिन से चख चख होत रहत बाटे. घर बन जाई त तुहूं लोग आ के रह सकत बाड़. ’’
राधा के ई बात पसंद आइल. उ मुन्नी से कहली कि जमीन लेवे के बा त अपना बाबू जी से बोल. काहे कि उहें के नाम से जमीन बाटे. मुन्नी के बगल में बइठल उनकर बाप धीरज हामी भर दिहलें. बेटी दामाद के नामें जमीन रजिस्ट्री हो गइल. 
मुन्नी के मरद राहुल लालची किस्म के आदमी रहस. ओकरा पास स्वाभिमान नाम के कवनों चीज ना रहे. धनबाद में उ एगो प्राइवेट कंपनी में काम करत रहस. अतना पइसा मिल जाव, जेसे दुनू परानी के जीवन बढ़िया से कट सकत रहे. बाकिर जब राधा जइसन सास घर जमाई बनावे के तइयार रही त राहुल के का इतराज. उ मुन्नी के साथे ससुराल में बैठ के गुलझाड़ा उडा़वत रहस आ आपन पइसा बैंक में जामा करस. ओही पइसा से जमीन मिलला के बाद घर बना लिहलें. 
संजू के जब धनबाद वाली जमीन पर मुन्नी के घर बने के खबर मिलल त उ उनका पैर के नीचे से धरती घिसक गइल. विश्वास ना भइल. उ जा के घर देख अइली. अपना मन के आक्रोश अपना सास-ससुर आ पति पर उतली. सास ससुर के हुक्का पानी बंद कर दिहली. 
बेटा के चुपी आ बहू के बेरूखी से संजय के पिता धीरज बेमार पड़ गइलें. ऊ बार बार घर के बिगड़त हालात के सुधारे के कोशिश कइलें, बाकिर हालत आउर बिगड़त चल गइल. अब मन मारके कपड़ा के फेरू में आपन समय काटत रहलें. 
धीरज के बेमारी से राधा के हेकड़ी भी भूला गइल रहे. सबसे बड़ा दुख त उनुका अपना बेटी -दमाद पर होखे. जब ले घर ना बनल रहे हर टाइम दुनू घर के माटी कोड़लें रहस. घर बनला के बाद त साफे भुला गइल रहस. ऐने मरद के बेमारी से राधा के हाथ खाली रहे. सोचली कि बेटी -दमाद के मदद से धीरज के कतही अस्पताल में भरती करा दी. एहे सोच के बेटी के घर गइली. 
धराऊ कपड़ा पहिर के मुन्नी आ राहुल कतहीं जाये के तइयारी में रहे लोग, ओही समय में राधा पहुंचली. दुनू जाना देख के बड़ा खुश भइल लोग. मुन्नी हंसत बोलली कि बड़ा खुशी के मउका पर आइल बाड़ू माई, एगो बिआह समारोह में जात बानीस, कंपनी के मालिक के बेटी के शादी बा. 
‘‘ हम बारात करे नइखीं आइल बबुनी, तोहरा बाबूजी के तबियत बहुते खराब बाटे. उनुकरा के कतही भरती करा द लोग. ’’ ई बात कहत राधा के आंख छलछला आइल. 
‘‘ आरे माई ,एह खुशी के मउका पर का रोवे धोवे लगली. पाकल फल के कहिया ले गाछ पर टंगले राखब. चलीं, बारात से अइला के बाद भरती करावे के बारे में सोचल जाई.’’ राधा के दमाद राहुल मुन्नी के बोले से पहले बोल पड़लें. 
दमाद के बोली राधा के करेजा में गोली नियर लागल. दिल दिमाग झनझना गइल. उनकर आहत मन कहलस कि बेटी के ममता में पतोह के दुश्मन बना लिहलू, अब त बेटी दमाद के अपनान त सहे के पड़बे करी. आंखी में लोर भरलें ऊ उहां से गोड़ पटकत घरे भगली. 
ऐने संजू जबसे मुन्नी के घर देख के आइल रही तब से उनकर दिन के चैन आ रात रैन उड़ल रहे. हरमेशा मरद मेहरारू में महाभारत छिड़ल रहे. संजू कहत रही,‘‘ तोहरा अपना बाल बच्च के फिकिर नइखे,बाकिर हमरा त बाटे. तू जवन कमइल तवन अपना माई, बहिन आ बहनोई पर लूटा दिहल. चार कट्ठा धनबाद में जमीन रहे ,उहों तोहार बहिन छीन लिहलस. ओह में तोहार हिस्सा ना रहे का ़?’’
‘‘ जमीन त बाबूजी के नावे रहे. ऊ अपना बेटी के दे दिहलें त का हम जिंदा ना रहब.’’
‘‘ तोहरा जिंदा रहे के बा त रह, बाकिर जबले ओह जमीन के बदले जमीन ना मिली, हमार छाती के आग ठंढ़ा ना होई. ’’
संजय के अइसन लागल कि संजू पगला गइल बिया. उ जतने पियार से समुझावे के कोशिश करस, उ ओतने बढ़ चढ़ के बोलत रहे. संजय के लागे कि एक तरफ बाप बेमार बाड़ें, झगड़ा के डर से उनुकर इलाज नइखे हो पावत . घर में जबले रहब झगड़ा होते रही, इहे सोच के ऊ घर से बाहर जाय़े लगले. तबही संजू गुस्सा में नागिन खानी फन कढ़ले उनकरा आगे आके खड़ा हो गइली आ बोलली,‘‘ आपन भलाई चाहत बाड़ त फैसला क के जा.., एह घर में हम रहेब ना त ई बूढ़ा बूढ़ी..’’
‘‘तोहार अतना मजाल कि हमारा जीते जी माई बाबू के घर से निकाल देबू, तोहार हाथ गोड़ तुड़ के जिंदा जमीन में गाड़ देहब..’’ खिसिया के ऊ जइसे मारे खातिर संजू के ऊपर हाथ उठवले , ओबी बीच उनुकर बेमार बाप बीच में आ गइले. संजय के ऊठर हाथ रूक गइल. ऊ बाप के सामने खड़ा ना हो पवले, तुरंत घर से घिसक गइले. 
‘‘ अरे बेटी, शांत हो जा. जादे गुस्सा ठीक नइखे. हमनी के घर से निकाले के जरूरत नइखे. हम दुनू परानी अबही घर छोड़ के चल जात बानीस. जाते जाते तोहरा से ईहे कहब कि बेटी के ममता में खुदगरज बन गइल रहीं. जवना से तोहार हक मार देले बानी. एह बेइमानी के सजा सिर माथे पर. जब आपन जामल खून दगा दे देलस,त तू त पराया घर के बेटी हऊ...’’ अतना बोल के धीरज अपना राधा के साथे घर चउखट पार कर गइले. 
अचानक ई बात संजू के करेजा में धक से लागल. आसमान में उड़त उनुकर मन धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ल. सास ससुर के जात देख के उनुकर आंख बरस पड़ल. दुनू के रोके खातिर पीछे दउर पड़ली.
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लेखक परिचय:-

पता: सब्जी बगान लिलोरी पथरा झरिया,
पो. झरिया, जिला-धनबाद, झारखंड(भारत) पिन 828111,
मो. 09431730244
अंक - 50 (20 अक्टूबर 2015)

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