निरगुन बानी हम - राजीव उपाध्याय

निरगुन बानी हम, काहाँ गुन हमरा में।



गुनवा जेवन-जेवन तोहके देखावेनी

मिलल उधारी केहू, केहू के चूकावेनी।


काहाँ कुछु बावे हमार, सभ कुछ उधारी
चुकावे के परे हमरा जब छुटि यारी।

अइसने बावे नेम आचार सभ हो
नउँआ बिलाई माटी बनब हो।

निसी-दिन निसी-दिन एगही बेमारी
कइला से कइसे होई सभ तईयारी।
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लेखक परिचय:-

पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश 

लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र 
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in 
दूरभाष संख्या: 7503628659 
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 50 (20 अक्टूबर 2015)

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