साधना - आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत

साधना कइला से मन में ही होला
नाहीं त ऊ बड़ा मोट बनि जाला।

मेंही भइला से मन व्यापक होला
दूर-दूर के सभ बात ऊ देखेला।

देखला से समझ-बूझ के पैर धरेला
एसे कबहीं ऊ ना गिरेला।

केहू ना ओकरा पर थपरी बजावेला
इज्जत के संगे ऊ दुनिया में रहेला।

मेंही भइला से सभ किछ बुझाला
दोसरा के दुःख-दर्द समझ में आवेला

हरदम ऊ सभकर मदद करेला
सभका में ऊ भगवान के पावेला।
-------------आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत
अंक - 45 (15 सितम्बर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.