तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥6॥
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥7॥
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥8॥
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥9॥
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥10॥
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥11॥
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥6॥
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥7॥
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥8॥
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥9॥
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥10॥
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥11॥
--------------घाघ
अंक - 47 (29 सितम्बर 2015)
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