सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥
कातिक सुदी एकादशी बादल बिजली होय।
कहे भड्डरी असाढ़ में, बरखा चोखी होय॥2॥
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥
उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़े, बरसा होई भुई चल बढ़े।4।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥5॥
--------------घाघ
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर॥1॥
कातिक सुदी एकादशी बादल बिजली होय।
कहे भड्डरी असाढ़ में, बरखा चोखी होय॥2॥
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय॥3॥
उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़े, बरसा होई भुई चल बढ़े।4।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय॥5॥
--------------घाघ
अंक - 46 (22 सितम्बर 2015)
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