आसिफ रोहतासवी कऽ गजल

फेड़न के औकात बताई
कहियो अइसन आन्ही आई.

घामा पर हक इनको बाटे
पियराइल दुबियो हरियाई.

पाँव जरे चाहे तरुवाए
चलहीं से नू राह ओराई.

मोल, चलवले के बा जांगर
रामभरोसे ना फरियाई.

नाहीं कबरी बिन हिलसवले
दिन-पर-दिन आउर जरियाई.

अपना खातिर चउकन्ना बा
तहरा बेर बहिर हो जाई.

माहिर बा चेहरा बदले में
सदियन तक असहीं भरमाई.

हक खातिर अड़ जइहें ‘आसिफ’
धमकाई, मारी, गरियाई.
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खुद में खोअल रहते बा 
दुनिया पागल कहते बा

बात प दुनिया के मत जा, 
बहुते कहलसु, कहते बा

पुर्नाहुत तक देखत जा,
ई त, यार, समहुते बा

दुलम त हमरा चुटकी भर 
उनका भर-भर पहते बा

डूबे के चुरुआ काफी 
ठेहुन भर त बहुते बा

कविते ना, तहजीबो ह
ग़ज़ल सभे त कहते बा

अंखियाँ से का दूर भइल 
'आसिफ' दिल में रहते बा
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जब ले मितवा मोर भइल बा
दुनिया-राजे सोर भइल बा.

हँसले बा अपना पर अतना
भर-भर आँखिन लोर भइल बा.

हमरे अँगना रैन-बसेरा
उनका सब दिन भोर भइल बा.

ऐनक में खुद के चुचुकारे
घाहिल चिरई-ठोर भइल बा.

जनहित, बस, अस्टंट सियासी
‘सत्ता’ ला गठजोर भइल बा.

‘आसिफ’ के फिकिरे दुबराइल
जब ले आदमखोर भइल बा.
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लेखक परिचय:- 

नाम - इन्द्र नारायण सिंह भा आसिफ रोहतासवी
जनम स्थान - शाहाबाद, बिहार 
जनम - 1 नवंबर 1960 
शिक्षा - पी एच डी 
संप्रति - व्याखाता पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय 
रचना - चटखटी दीवारें, महक माटी के अउरी आसमान बाकी बा आदि 
संपादन - परास
अंक - 43 (1 सितम्बर 2015)

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