एक चटकन कऽ दाम - डॉ० उमेशजी ओझा

उमेश जी कऽ ई कहानी 'एक चटकन कऽ दाम' उँहे कऽ हिन्दी कऽ एगो कहानी 'एक तमाचे की कीमत' क अनुबाद हऽ जेवन जुलाई 2014 के राष्ट्र संवाद नाँव कऽ एगो पत्रिका में छपल रहे। एगो बढिया परियास बा अनुबाद के। एह कहानी के असल कहानी के सोझा रखि के पढला पर ई लागता कि ई कहानी अउरी बढिया हो सकत रहलि हऽ बाकिर कई बेर अनुबाद के बेरा लेखक के सीमा होला औरी इहे एह कहानी के सङगे भइल बा। कहानी थोरकी सा कहीं-कहीं कमजोर हो जात बे बाकिर कहानी कहे अउरी बिसय बढिया बा। 
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रमेश बंशीपुर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक श्याम जी के बड लईका हवन. श्यामजी के पांच लईका आ तिनगो बेटी बाडिस. रमेश बंशीपुर ब्लाक में ही क्लर्क के काम करेले . श्यामजी आपन बड बेटा के बिआह ठीक कके बड़ी खुश रहन. आखिर खुश काहे ना होखस उनका पढ़ल लिखल पतोही जे मिलत रहे. उनकर होखेवाले भी राधेपुर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक सुरेशजी के पढ़ल लिखल लईकी सीमा जे रहली. दुनो परिवार जोड़ जुगुत एक बराबरे रहे. दुनो परिवार बिआह ठीक कके बड़ी खुश लागत रहे लोग. 
सुरेशजी के ठीक उलटा श्यामजी के छोट परिवार सुखी परिवार के ध्यान में राखत एगो बेटी आ दुगो बेटा. सभ मिलाके ऊ पांच परिवार रहलन. सुरेशजी भी आपन बेटी के बिआह पढ़ल लिखल घर में आ नोकरी वाला लईका से ठीक कके बहुते खूब खुश रहले. उनकर गोड जमीन प ना पडत रहे. 
सीमा के सुनरता के कतनो बडाई कइल जाओ कम होई. ऊ दुबर पातर, बाल करिया ठेहुना के छुअत, जेकरा से ऊ नागिन निहन लागत रही. उनकर सुनरता प मोहित होक त श्यामजी आपन बेटा के बिआह सीमा से ठीक कइले. बदले में एको फूटी कऊडी भी दहेज़ में ना लिहले. 
देखत-देखत रमेश के बिआह के दिन नजदीक आ गइल. 
रमेश के बिआह में दुनो मरद मेहरारू के खुबे आशिर्वाद मिलल. ई सभ के बीच रमेश आपन काका के एकदमे भुला गइल रहले. ओह दिन एक बेर भी रमेश आपन काका के हाल चाल ना पूछ पवले. रमेश के ई चाल से उनकर मनराखन काका बड़ी खिझिया गइल रहले. 
आपन बिआह में मिलल आशिर्वाद से रमेश अपने के अमर समझे लागल रहले. ऊ आपन अमरत्व के आपन दोस्त ईआरन से कही के आपन मन के बात उज्जागर करस कि उनका त बिआह में जुटल बड बुजुर्ग, देवी देवता के ढेरी आशिर्वाद मिलल बा, उनका अब कुछ नइखे हो सकत ऊ त अमर हो गइल बाड़े अमर. 
दोसरा ओरी नया घर में आइल रमेश के बहुरिया सीमा के ख़राब हाल रहे. ऊ आपन ससुराल में आपन माई-बाबूजी के कोसत रही........कि बाबूजी उनकर बिआह काहाँ कऽ देले बाडन. उनका घर में त उनकर माईओ काम में हाथ बटावत रही. एहिजा त परिवारों बड बा. आ उनकर साथ देबेवालो केहू नईखे. घर के सभ काम अकेले ही करके पडत बा. काम कईला से समय ना मिलला कऽ चलते उनका आपन मरद से बतियावहूँ कऽ समय नइखे मिलत. एक दिन उनकर मरद रसोई घर के लगे आके उनकर गाल पकड़ी के पुछले कि का हाल बा. आ आपन काम प चली गइले. बस उनकर सास देख लिहली. 
“का रे बहुरिया घर नइखे जे ई बेपरदा सभ हो रहल बा? कह त घरन के परदा सभ नोचवा दिहीं. का भगवान कइसन कलियूग आ गइल बा कि बड छोट के तनिको लाज नइखे.” 
सीमा लजा के रसोई घर के भीतरी चलि गइली. 
रमेश के गईला के बाद सीमा आपन सपना में डूब गइले कि का सोचले रही का हो गइल? उनकर बाबूजी ई घर के बारे में का-का बढ़ी-चढ़ी के बतवले रही कि लईका ब्लाक में काम करेला ढेरी दरमाहा मिलेला. आपन परिवार के बढ़िया से देख-रेख करि लिही. बाकी एहिजा त उलटा बा. बड परिवार आ भाई-बहिन में बड होखला के चलते रमेश सीमा के समय ना दे पावत रहले. जेकरा से सीमा आपन जिनगी उदास महसूस करत रहली. ऊ कई हाली रमेश के समझावे के परियास कइली कि ऊ उनका के भी कुछ समय देस. एही में एक दिन सीमा अपनी मरद से कहली - “सुनीजी बिआह रउरा कइले बानी ना कि राउर घर.....” 
बाकि ई सभ के कवनो असर रमेश प ना पडल. 
देखत- देखत एक बरिस बीत गइल. एह एक बरिस में सीमा बड़ी मुसीबत से लड़्त रहली. जइसे घर के बड पतोही होखे के चलते आपन सास के रोज तेल लगावास, ननद के नेहाइल कपड़ा तक धोअस, सभ केहू के जूठा बरतनों साफ करस. ओह एक बरिस में उनकर कबही तबीअत खराब हो जा त केहू उनकर हाल चालो ना पूछत रहे. एहिजा तक कि रमेश आपन काम से देर राती तकले आवस त आवते बिछावन प गिरते सूत जासु. उनकर परेशानी देखिके सीमा उनका के जगावातो ना रही. उनका बगल में अपने आपके कोसत कवनो राती जागी के त कवनो राती सूत के बितावत रही. 
घर के काम करत-करत सीमा अब थाक गइल रही. एक दिन सीमा रमेश से बोलली – 
“एजी सुनतबानी रउरा से कुछ बतिआवेके बा.” 
रमेशो ख़ुशी से बोलले - “का कहेके बा रानी बोल?” 
“राउर घर के काम करत-करत थाकी गइल बानी. रउरा लगे हमरा से बातो करे के समय नइखे. आवते बिछावन प ढेरी हो जात बानी. हमरो थकानी होला. एह घर में हमार थकानी आ तबियत ख़राब होखला से केहू के कवनो मतलब नइखे. हमार केहू हाल चालो ना पूछे. ना ही कबो खाना खाएके”. 
रमेश चुपचाप सीमा के बात सुनत रहले।
“एक वरिस में हमार नईहर के छोड़ी के केहू एगो साडी भी ना दिहल. आखिर हमरो मन करेला कि हमहू आपन ससुराल के आ राउर दिहल साडी पहिनती. बाकी अईसन नइखे हो सकत एहिजा.........एगो काम करी ररुआ त नोकरी करते बानी परिवार बढ़िया से राख सकत बानी, काहे ना अलग घर भाडा प लेके रहिजा.’’ 
रमेश चुपचाप सीमा के बात सुनिके घर से निकले लगले, त पीछे से सीमा बोलली - “ सुनत बानी काँहे कुछ नइखी बोलत? का करब।? आखिर कुछू बोलि के त जाईं.” रमेश बिना कुछ बोलले घर से निकल गइले. 
ओह दिन रमेश के आपन काम प तनिको मन ना लागत रहे. आपन जोरू के सभ बात उनका दिमाग प सिनेमा के रील निहन घुमल चलल जात रहे. रमेश सोचे लागले आखिर सीमा ठीके त कहत बाड़ी, आखिर अतना दिन में उनकर दुःख तकलीफ के हमहू त नइखी पुछले. उहो त इनसान हई. आखिर उनको त थकान होला, ओकरो भीतरी त खून बा, ऊ सभके काम करेले, आ ओकरा के केहू खाए तक ले ना पूछेला, काहे ना अलगे भाडा प घर लेली, आ सीमा के साथे रहीं. तबही रमेश के धेयान आपन माई बाबूजी के ओरी गइल, आ उनकर सोचल सभ बालू के रेत निहन ढहत लउके लागल, ऊ सोच में पड़ गइले कि आखिर ऊ घर के सबसे बड बाड़े, जब उहे घर छोड़ी के अलग हो जइहें त उनकर चारो भाई का करिहे? अइसे तऽ एकदम से उनकर घर बिखर जाई. बहिनियो सभ के बिआह करके बा. बाबूजी अकेले परि जाइब. 
रमेश रोज सीमा के बात के उधेड़बुन में रहे लगले. आखिर करस त का करस? एक ओरी उनकर सीमा त दोसर ओरी माई-बाबूजी आ भाई-बहिन. ऊ जास त केने जास? अब उनकर मन कवनो काम में ना लागत रहे. भीतरे भीतर घुटत रहले. 
रमेश जब घरे आवस त सीमा आपन बात लेके बईठ जात रही. घर से अलग रहे के बात कहत रही. उहे सब बात सोचत-सोचत रमेश भीतरी से एकदम टूट गइल रहले. ऊ फैसला ना कऽ पावत रहलें कि आखिर करस त करस का? 
एक दिन रमेश आपन डिउटी से घरे अइले त उनकर धरमपत्नी फेरु से उहे सवाल लेके बइठ गइली. 
“रमेश, आखिर बोलत कहे नइखी अइसन जिनगी अब हमरा से सहल नइखे जात, कुछो त बोली कि का करके बा? अईसन कइल जाव कि हमहूँ पढ़ल।-लिखल बानी कहीं नोकरी कर सकत बानी. हमरो के कहीं नोकरी लगवा दिहीं, जेसे हमार समय भी पार हो जाई. आ कुछ पइसो आई. घर भी ठीक से चली. बाबूजी के हाथो मजबूत हो जाई.” 
अबकी हाली रमेश झुझलात बोलले 
“देख सीमा हम घर के बड बानी, ना त हम अलग रही सकत बानी, ना त हम तहरा के नोकरी करके के आपन मंजूरी दे सकत बानी. तहरा एही घर में रहेके बा, आ सभ केहुके सभ कुछ सहेके आ सुनके बा, सुनलू.” 
“ हम यह घर में नइखी रह सकत, घर छोड़ के चलि जाइब .” 
“चलि जा। अब तहरा के तहार बाबुजीओ ना पूछिहें” 
रमेश बोलि के आपन घर से बहरी आपन काका के लगे गइलें. 
रमेश के देखते मनराखन काका तपाक से रमेश के टोकले, 
“कारे रमेशवा मूँह काँहे लटकवले बाड़े. कुछ भइल हऽ का?” 
“हँ काका!” 
ओकरा बाद रमेश आपन सीमा के साथ भइल सभ बात आपन मनराखन काका से कह दिहले.” 
“रमेश, बहुरिया के कहल एक दमे नु सही बा. बाकी तहरो मजबूरी बा कि तू अलग रही नइख सकत. माई-बाबूजी के छोड़ के अलग रहल भी सही नइखे. आखिर ऊ लोगन के भी त कुछ अधिकार बा तहरा प. अइसन काहे नइख करत कि आपन बाबूजी से बतिआ के बहुरिया के कही नोकरी लागवा दऽ. जेकरा से घर में शांति भी बनल रही और बहुरिया भी दिन भर आपन नोकरी प रही जेकरा से ओकर मन भी लागल रही.” 
“का कहत बानी काका? परिवार के बड होये के चलते हम आपन मेहरारू के नोकरी करे खातिर मंजूरी नईखी दे सकत. भाई और गाँव के लोग का कहिहे कि अब आपन नोकरी से पेट न।इखे भरत त आपन जोरू के नोकरी करे खातिर भेज दिहलस? ना काका ना अईसन ना होई.” 
रमेश ओहिजा से सीधे आपन नोकरी प चली गइले. साँझिके घरे अइलें तऽ फेरु से सीमा आपन उहे बात दोहरवली. रमेश, सीमा के बात सुन-सुन के ऊबिया गइल रहलें. कुछ बोलत ना रहले. चुपचाप बइठल आपन बिआह में मिलल ऊ सभ आशिर्वादन के सोचत रहले कि ऊ आशिर्वादन से ऊ अपने आप के अमर समझे लगले रहन आजू उहे आशीर्वाद उनका अभिशाप लागत रहे. 
तबही सीमा, रमेश के पकड़ी के जोर से झकझोरत पुछली - 
“का करके बा कही, तनिको नइखे सहल जात. जवन करके बा आजुये फइसला करीं.” 
अतना सुने के रहे कि रमेश एगो जोरदार चटकन सीमा के गाल प लगा दिहले. चटकन लागते सीमा बिना कुछ केकरो से बोलले आपन बाबूजी के फोन से बतवली कि रमेश उनका से दहेज़ के दू लाख रुपया मागत बाडन, जब हम मना कइनी हँ तऽ हमरा साथे मारपीट कइले हँ। रउरा आई आ रमेश के समझाई.” 
आपन बेटी के पुकार सुनिके सुरेशजी आपन बेटी के ससुराल आ धमकले. सुरेश जी के आवते श्याम जी से बोलनी 
“बेटी सीमा के बोलाई ”. 
“का बात हऽ? सुरेशजी.” 
“कुछ ना पहिले सीमा के बोलाई ” 
रमेश आपन नोकरी प गइले रहले. 
श्यामजी आपन बेटा बहु के बीच भइल बताबती से अनजान आपन बहु के आवाज़ लगवलें 
“अरे ये सीमा तनी दुआर प त आवऽ” 
सीमा दुआर प आवते आपन बाबूजी के देखि के खुबे खुश होत उनकर गोड छूके गोड लगली. 
तबही श्यामजी बोलनी, “देख सीमा सुरेशजी बहुते खिझिआइल लागत बानी. का बात बा तुही बताव।?” 
सीमा आपन बाबूजी के ओरी घूमके “बाबूजी रमेश दहेज़ के दू लाख रूपया मांगत बानी, जब उनकर बात ना मननिहा त हमरा के मारपीट कइले हँ।” 
“अईसन नईखे हो सकत बहु! जब अइसन बात रहे त पाहिले तहरा हमरा से कहल चाहत रहे. ना। रमेश ईसन नइखे कर सकत। कुछ अउरी बात होई?” 
सुरेशजी बोले लगन - 
“त राउए बता दिही, का बात बा? एहिजा त साफ लउकत बा कि अबही बिआह के एक बारिस भी नइखे भइल, राउआ सभे हमार बेटी के संगे मारपीट भी करे लगनी. ई बड़ी शरम के बात बा कि दहेज के पइसा भी मांगल जात बा.” 
“अगर अइसन राउआ बुझात बा त हम रमेश से बात करब। राउआ रुकीं। रमेश के बोलावत बानी.” 
“ना ईन्तजार का करके बा? हम आपन बेटी के बिआह रउआ किहें क के गड़हा में गिर गइल बानी। राउआ आपन बेटा से बात करत रही हम आपन बेटी सीमा के लेके जात बानी.” 
“ना अईसन मत करी एगो मोका त हमरा के दिही कि हम आपन बेटा से बात क के सही बात के जानकारी ले सकी.” 
बाकी सुरेश जी आउर सीमा प श्याम जी के बात के कवनो असर ना पडल, आ ऊ लोग श्यामजी के घर से चली गइले. 
सीमा आपन नइहर पहुचते आपन घर के लोग से बात कइली त सभ केहू एके सलाह दिहल केस करके, ओकरा बाद ऊ लोग सीमा के पति, सास, ससुर, देवर, ननद प दहेज़ मांगे खातिर तंग करके आ उनका नइहर आके उनका साथे मारपीट करके के दोष लगाके झूठ केस कऽ दिहलें. 
रमेश जब घरे अइले, त उनकर बाबूजी एगो जोरदार चटकन उनका गाल प लगा दिहले. 
“तू जानत बाड़ऽ आजू सुरेशजी आइल रहलन॥ भला बुरा कहिके सीमा के आपन साथे लेके चली गइले. तहरा दहेजे मांगे के रहे त हमरा से मांगी लिहित।.” 
आपन बाबूजी के बात सुनिके रमेश के त काठ मारी दिहलस. रमेश लकड़ी के बुत बनल आपन बाबूजी के बगल में बइठल उनकर डाट चुपचाप सुनल जात रहन. आ आपन सीमा के साथे घटल घटना के सोचे लागले. थोड़ी देर बाद जब उनकर बाबूजी शांत भइले त उनकर दाढ़ी पकड़ी के बोलले 
“बाबूजी हमरा प विश्वास नइखे? हम ईसन कर सकत बानी?” 
ओकरा बाद धीरे-धीरे रमेश आपन सभ बात बाबूजी के बता दिहले. 
श्यामजी, आपन बेटा के पीठ ठोकी के कहले बढ़िया कइले बेटा, चल अब जवन होई देखल जाई. हम तहरा साथे बानी. 
कुछ दिन बाद एगो लिफाफा श्यामजी के मिलल, लिफाफा खोलके देखते सन रह गइले, सोचे लागले कि अतना पढ़ल लिखल स्कूल के प्रधानाधेयापक अतना निचे गिर सकत बा? बिना बात के जाने अतना बड कदम उठा लिहले. आखिर ऊ आपन बेटी के जिनगी बरबाद करे प तुल गइल बाड़े. ऊ लिफाफा में अउरू कुछ ना रहे ओह में कोर्ट में कइल केस के नोटिस रहे. आपन बेटा, बहु के जिनगी उजड़त देखि के श्यामजी से रहल ना गइल. आ पहुच गइले आप समधी के गाँव राधेपुर. 
सुरेशजी आपन समधी श्यामजी के देखते आगि बबूला होत उनका के आपन दुआर प चढ़े से पहिलही टोकले 
“ओहिजे रुकी श्यामजी दुआर प मत चढबी”. 
“खिझिआई मत समधीजी, रउरा से कुछ बात करके बा, हम रउरा के रमेश आ सीमा के बीच भइल बात के सचाई बतावल चाहत बानी.” 
“श्यामजी चल जाईं एहिजा से, आपन सचाई अपने पास राखी. हमरा कुछ नइखे सुनके, दुआर प चढबी त ठीक ना होई?” 
“ठीक बा रउरा नइखे सुने के त मत सुनी. बाकी जात-जात अतने कहब कि अबही समय बा आपन बेटी के जिनगी बरबाद मत होखे दिही.” 
आखिर में श्यामजी आपन समधी के गाँव से बेईज्जत होके आपन गाँव आपस आ गइले।. 
कुछे दिन बाद सीमा के कोर्ट में कइल केस के सुनवाई चले लागल. करीब छः महिना बाद जज साहेब दुनो ओरिके बात सुनके, उनका अब आपन फैसला सुनावे के रहे. 
जज साहेब, “दुनो पक्ष को आखिरी मौका दिया जाता है, क्यों कि लड़की के जिन्दगी का सवाल है. आप लोग आपस में बात कर दोपहर बाद बताये उसके बाद फैसला सूना दिया जाएगा.” 
अतना जज साहेब के कहत भइल कि तपाक से श्यामजी आपन बेटा पतोही के ओरी देखत, सुरेशजी के ओरी लपकते बोलले, “ सुरेशजी अबहियो समय बा घटना के सचाई के जानी आ आपन बेटी के जिनगी खातिर समझोता क लिही.” 
“आगे मत बढ़ी श्यामजी समझोता करके त सवाले नइखे. रउरा आपन बेटा के जिनगी देखि, हम आपना बेटी के.” 
श्यामजी आपन बेटा पतोही के जिनगी बचावे खातिर, आखिरी पासा आपन पतोही के ओरी फेकले, “बेटी सीमा अब तू आपन बंद दिमाग के शांति से खोल आ सोच कि तोहरा दुनो बेकत में का अतना बात हो गइल रहे कि तू लोग एहिजा तकले पहुच गईल लो. अबहियो मोका बा, आपन जिनगी के फैसला खुद कर कि का तू तलाक लेके अकेले जिनगी जी सकत बाडू ? ” 
आपन बेटी से श्यामजी के बात करत देखि के सुरेशजी आके श्यामजी के बुरा भला कहे लगले, सीमा चुपचाप सब देखत रहली बाकी एको शब्द ना बोलली. 
तबही कोर्ट से दुनो पक्ष के हाजिर होखेके आवाज़ आइल, दुनो पक्ष कोर्ट में हाजिर हो गइल. कोर्ट द्वारा लइकी पक्ष से आखिरी सलाह मांगल गइल, एह प लइकी के बाबूजी सुरेशजी कहले कि जज साहेब हमनी के बात कलेले बानी हमार बेटी ऊ लोग के साथे ना रही. फइसला सुनावल जाव. 
जज साहेब कहले कि, “दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ईस नतीजे पर पहुँची है कि लड़का लड़की अब आपन वैवाहिक जीवन व्यतीत करना नहीं चाहते है, ।सलिए न्यायालय तलाक मंजूर .............,” 
तबही सीमा जोर से चिलइली, “रुकी जज साहेब.” 
“हमनिके, हमरा मरद के मारला के एक चटकन के दाम अतना महंगा मत दिही, हम त आपन बाबूजी से खाली आपन पति के समझावे के कहले रही. बाकी एहिजा त हमनिके जिनगीये उजारे के बाज़ार लागल बा. हमनी के अलग मत करी हमरा आपन पति से कवनो शिकायत नइखे. हम आपन पति के साथे रहल चाहत बानी.” अतना कहिके सीमा फफक-फफक के रोये लगली, रमेश सीमा के लगे जाके उनका के आपन छाती से लगाके उहो राये लगले. अब दुने के आपन गलती के अनुमान हो गइल रहे. तबही श्यामजी आपन बेटा पतोही के चुप करावत पेयार से उनका माथा प हाथ फेरत कहले कि.......... 
“देखि सुरेश जी हमार बहु अब राउर बेटी ना हई. इनका में हमरा घर के संस्कार आ गइल बा. आजू हम गर्व से कही सकत बानी कि सीमा हमर बहु ना बेटी हई.” 
श्यामजी आपन बेटा बहु के लेके एगो नया जीवन जिए खातिर शुरुआत करके आशीर्वाद देत चली गइले. आजू ऊ लोग के एगो बेटा भी बा आ दुनो के बीच कवनो शिकायत नइखे. 
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लेखक परिचय:-

                                                   नाम: डाo उमेशजी ओझा
पत्रकारिता वर्ष १९९० से औरी झारखण्ड सरकार में कार्यरत
कईगो पत्रिकन में कहानी औरी लेख छपल बा
संपर्क:-
हो.न.-३९ डिमना बस्ती
                                                    डिमना रोड मानगो
पूर्वी सिंघ्भुम जमशेदपुर, झारखण्ड-८३१०१८
ई-मेल: kishenjiumesh@gmail.com
मोबाइल नं:- 9431347437

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