महंगाई में भुलाईल रिस्ता


अगर ढँग से देखीं तऽ एगो साहित्यिक पत्रिका में साहित्य के चर्चा होखे के चाहीं औरी ओ हिसाब से ए लेख के ए पत्रिका में छपे के केवनो कारन नईखे। लेकिन जईसहीं एकरी बिषय पर धियान जा ता तऽ इ बात एकदम साफ हो जात बा कि ए लेख जिनगी औरी रिस्ता के अझुराई गाँठ के ले के चिन्तित बा। बस एके छापे खाती मजबूर हो जात बानी।
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ईयाद करी छठी माई के गीत “पांचऽ पुतऽर आदित हमारा के दिहिना, धिअवा मंगिले जरुर” छठ माई के परब करेवाली आजुओ ई गाना गावेली. आ सुनहु में ई गाना के बड आनन्द आवेला. यानी कि जब ई गाना के प्रचलन शुरू भईल होई ओहघरी आबादी कम होई. आजू के लोग से दिल से पूछी त केहू पांच गो लईका ना चाहत होईहे. जईसे जईसे समय बदले लागल कम परिवार होखे लागल. ओह घरी एगो घर में रिस्ता के भरमारी रहत रहे. परिवार आ गाँव में एक दोसरा के घर के आपन आ दोसरा के लईका के आपन लईका समझऽत रहले. केहू आन ना बुझात रहले. लईकन के गलती कईला प चटकन धरावे से भी परहेज केहू ना करत रहले. आजू ऊ समय नईखे कवनो लईका के मारी दिही त देखि तमासा. एही सब प नजर दौरावत कम होखे लागल परिवार आ महंगाई के मारी से परिवार में भुलात रिसता प धेयान दिही. 

ईयाद होई बड परिवार के छोट करे खातिर भारत सरकार एगो स्लोगन निकलले रहे “हम दो हमारे दो” . सरकार एकरा के एगो अभियान के तौर प निकलले रहे. मकसद रहे बढ़त आबादी प हुक लगावल. ओकरा के कम कईल . ढेर दिन तकले लोगन के घर के दिवार प , अखबारन में , बईनर पोस्टर हर कही एकर ईस्तेमाल होत रहे. धीरे-धीरे परिवार के आकर तीन से दू लईका तकले सिमित होखे लागल. १९५२ से १९८० तकले कम से कम तीन भा ओकरा से अधिक लईकन के आबादी के ट्रेड रहे. १९८० से २००० के बीच एगो भा दू लईका वाला परिवार ६५ प्रतिशत तक रहल. एहिजा तकले त सभ ठीक रहल कि परिवार में लईकन के लगभग हर रिस्ता मिलल जईसे , चाचा, फुआ, दीदी. भईया, . बाकी परिवार प महंगाई के जे ना मारी पडल कि अब परिवार में एगो ट्रेड बनल जात बा कि “हम दो हमारे एक”. २००० से २०१४ के बीच हम दू हमार एक के ट्रेड १० प्रतिशत तक बढ़ गईल. नतीजा हमनिके सामने बा , परिवार के जानल मानल कईगो रिस्ता धीरे-धीरे ख़तम हो रहल बा.

एह सब के पीछे सबसे बड कारन बा कि महंग होत स्कूली शिक्षा. एकर असर खासकर बड शहरन में ढेर बा. औधोगिक संगठन एसोचेम आपन एगो रिपोर्ट में जानकारी देले बा कि पिछला दस बरिश में स्कूली पढाईके खर्च डेढ़सो प्रितिशत तक बढ़ गईल बा. २००५ में एगो लईका प शिक्षा में सालाना खरचा पचपन हजार रूपया रहे. अब ई डेढ़ लाख रूपया हो गईल बा. अईसना में अब परिवार एगो लईका से अधिक नईखन चाहत. पहिले लईका होखला के बाद एक- दू साल स्कूली शिक्षा के प्लानिग कईल जात रहे. अब माई- बाबूजी लईका जन्म से पहिलही पईसा के जुगाड़ में लागी जात बाडन. काहे कि एगो प्लये स्कूल के फीस ३५,००० से ७५,००० तकले पहुच गईल बा.

एसोचेम द्वारा १० शहर दिल्ली, मुबई, बंगलूर ,पुणे, अहमदाबाद, चंडीगढ़, लखनऊ और देहरादून में सर्वे कईल गईल,. जेकरा में ७० प्रतिशत दम्पति द्वारा कहल गईल कि उनका तलब के ३० -४० प्रतिशत हिस्सा लईकन के स्कूली शिक्षा प खर्च हो जात बा. नीचे धेयान दिही लईकन प खर्च............

सालाना औसत स्कूली खर्च –

एह सब प
एगो लईका प
दुगो लईका प
टिउशन फी ,ट्रांसपोर्ट
३५,०००
६५,०००
भवन फंड
२५,०००
४०,०००
ड्रेस/शुज 
६०००
१२३००
बैग आ बोतल
१५००
३०००
बुक्स/ कोपी
८४००
१७०००
अन्य खर्च में
१३,५००
२५,५००


टिउशन आ कोचिंग –
स्तर
एगो लईका प
दुगो लईका प
प्राइमरी स्तर प
५,०००
१०,०००
सेकेंडरी स्तर प
२५,०००
५०,०००

एक्सट्रा एक्टीविटी –
प्राइमरी स्तर प
५,०००
१०,०००
सेकेंडरी स्तर प
२५,०००
५०,०००


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लेखक परिचय:-

                                                   नाम: डाo उमेशजी ओझा
पत्रकारिता वर्ष १९९० से औरी झारखण्ड सरकार में कार्यरत
कईगो पत्रिकन में कहानी औरी लेख छपल बा
संपर्क:-
हो.न.-३९ डिमना बस्ती
                                                    डिमना रोड मानगो
पूर्वी सिंघ्भुम जमशेदपुर, झारखण्ड-८३१०१८
ई-मेल: kishenjiumesh@gmail.com
मोबाइल नं:- 9431347437

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