भगवान के मूरति!
नीमन बा एह जमाना में
तूँ चुपचाप
मंदिर में बइठल रहऽ
टुकुर-टुकुर ताकत रहऽ
घरी घंटा बाजत रहे
जल ढरकत रहे
भोग लागत रहे
आ तूँ खा मति
असहीं सूँघऽ
लोग परसाद कहि
पावत रहे।
बाजार गरम बा
भाव चढ़ल बा
कहल सरल बा
कइल मोसकिल बा
जब तू खइबू
अउरू फरमइब
त के खिआई?
-एह जमाना में
जब अपने पेट पहाड़ बनल बा
जब अपने पेट भंसार बनल बा
असहीं ठीक बा
दूनों के धरम बाँचल बा।
नीमन बा एह जमाना में
तूँ चुपचाप
मंदिर में बइठल रहऽ
टुकुर-टुकुर ताकत रहऽ
घरी घंटा बाजत रहे
जल ढरकत रहे
भोग लागत रहे
आ तूँ खा मति
असहीं सूँघऽ
लोग परसाद कहि
पावत रहे।
बाजार गरम बा
भाव चढ़ल बा
कहल सरल बा
कइल मोसकिल बा
जब तू खइबू
अउरू फरमइब
त के खिआई?
-एह जमाना में
जब अपने पेट पहाड़ बनल बा
जब अपने पेट भंसार बनल बा
असहीं ठीक बा
दूनों के धरम बाँचल बा।
-----------------रसिक बिहारी ओझा 'निर्भीक'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें