भोजपुरी भाषा क मानकीकरण, ‘ओकर शब्दन क एकरूपता’


‘भोजपुरी भाषा के प्रमाणिक रूप’, ‘भोजपुरी भाषा के एकरंगी रूप’, भोजपुरी भाषा के मानकीकरण के आवश्यकता’ जइसन विषय पर समय समय पर विद्वावनन के विचार आइल। भोजपुरी के मानक रूप के तैयार करे के प्रयास लगातार चल रहल बा। कहे के ना होई कि भोजपुरी साहित्य के सृजन सिद्व आ नाथ पंथ, कबीर पंथी, भगताही आ सरभंग सम्प्रदाय के संत भक्त कवियन के ‘बानी’ से शुरू भइल। बाकिर साहित्यिक रूप में भोजपुरी भाषा के निर्माण पिछला 100 साल से हो रहल बा। जब भोजपुरी साहित्य के निर्माण शुरू भइल तब एकर प्रथमिकता, एकरूपता, मानकीकरण आ एकरंगी रूप के सवाल उठल। एह विषय पर भोजपुरी के भाषा शास्त्री पुरखा-पुरनिया आ पुरोधा लोगन के धेयान गइल आ तब से प्रयास चल रहल बा एह भासा के मानकीकरण करे के।


शुरूआती दौर में भोजपुरी के विद्वानन तय कइले कि चूंकि भोजपुरी भाषा के क्षेत्र 50,000 (पचास हजार वर्ग मील) बा आ जदि डाॅ॰ गियर्सन आ डाॅ॰ उदयनारायण तिवारी के निर्धारित भोजपुरी क्षेत्र के सीमा स्वीकार कर लिहल जाय त कहल जा सकेला कि एह भाषा क्षेत्र के अंतर्गत भारत के छव राज्यन - बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश आ उड़ीसा के भू-भाग आ जाला हालाँकि भोजपुरी के प्रधान केन्द्र उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग आ बिहार के पश्चिमी भाग हऽ।

एतना लमहर भू-भाग में फइलल भोजपुरी के डाॅ॰ गिर्यसन चार भाग में बँटले - उत्तरी, दक्षिणी, पश्चिमी आ नगपुरिया। उत्तरी भोजपुरी सरयू (घाघरा) नदी के उत्तर में बोलल जाला। एकर दू गो विभाग बा - सरवरिया आ गोरखपुरी। सरवरिया सिद्धार्थ नगर, संत कबीर नगर, बस्ती आ पश्चिमी गोरखपुर के आस-पास सरयू नदी के उत्तर स्थित ‘सरूवार’ (सरयूपार) क्षेत्र में बोलल जाला। स्थानीय परम्परा के अनुसार फैलाबाद जिला के अयोध्या से लेके देवरिया जिला के मझौली तक ‘सरूवार’ प्रदेश हऽ। गोरखपुरी के क्षेत्र पुरबी गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया आ कुशीनगर हऽ।

दक्षिण भोजपुरी के क्षेत्र अंबेडकर नगर, संत रविदास नगर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनपुर, जौनपुर, आजमगढ़, मउु आ पश्चिमी गाजीपुर हऽ। कुछेक विद्वान एकरा ‘कशिका’ कहेले। देखल जाव तऽ उत्तरी, दक्षिणी आ पश्चिमी भोजपुरी के जोड़ा अलग अलग विद्वान अलग अलग ढ़ग से कइले बाड़न। डाॅ॰ कृष्णदव उपाध्याय उत्तर आ दक्षिणी भोजपुरी एक जोड़े में रख ले जबकि डाॅ॰ रामदेव त्रिपाठी दक्षिणी आ पश्चिमी भोजपुरी के केन्द्रीय मान कर के एगो जोड़ा बचवले।

सोन नदी के दक्षिण में नगपुरिया भोजपुरी बोलल जाले एकरा ‘अदानी’ भा ‘सदरी’ कहल जाला। डाॅ॰ श्रवण कुमार गोस्वामी ‘नगपुरिया’ के स्वतंत्र भाषा मानेलन। झारखण्ड में एकरा दूसरा राज्य भाषा के रूप में मान्यता मिल चुकल बा। बाकिर रोहतास, आसाराम के सरल झारखण्ड के तीन जिला - पलामू, गढ़वा, आ लातेहर में भोजपुरी व्यवहार के भाषा हऽ।

चम्पारण जिला के भोजपुरी के डाॅ॰ गिर्यसन ‘मधेशी’ कहलें। ‘मधेसी’ यानि बीच में। मिथिलाचंल के मैथिली आ गोरखपुर के भोजपुरी के बीच में चम्पारण के इ जिला-पूर्वी आ पश्चिमी। पं. गणेश चैबे ‘मधेसी’ भोजपुरी के जगह पर ‘पूर्वी भोजपुरी’ प्रयोग कइले बानी।

भोजपुरी मानकीकरण खातिर विद्वान के दूगो वर्ग रहे एक वर्ग एह बात के हिमायती रहे कि ‘भोजपुरी इलाका में प्रचलित भा भूलल-बिखरल शबदन के बटोर के, सहोर के साहित्य में ले आवे के चाहीं। एह वर्ग के मानल बा कि भोजपुरी भाषा के तेवर आ ऊर्जा ओहि गाँव-गिराव, गँवई क्षेत्र में प्रचलित शब्दन में बा।

दोसर वर्ग समय के परिवर्तन के संगे भोजपुरी शब्दन में भइल परिवर्तन के पक्षधर रहे। पहिला वर्ग संस्कृत, हिन्दी से आइल तत्सम आ तदभव शब्दन के भोजपुरीकन के पक्ष में रहे आ भोजपुरी में आइल तत्सम शब्दन के संगे छेड़़छाड़ के पक्ष में नइखे। एह दूनो के बीच एगो तीसर धारा बहल जवन ‘मध्यम वर्ग’ कहल जाला।

प्हिला धारा में एकदम गवाँरू लिखे के पक्ष में रहे। एकर विचार बा कि बोलचाल के ठेठ स्वरूप के कवनो हाल में ना छोड़े के चाहीं। एह धारा के अनुसार ‘श’, ‘ष’, ‘स’, ‘ज्ञ’, जइसन अक्षर आ सँयुक्ताक्षर के प्रयोग ना करे के चाहीं। एह विचारधारा में हवलदार त्रिपाठी सहृदय, रास बिहारी पाण्डेय, अवध विहारी, कवि सिपाही सिंह श्रीमंत प्रमुख रहीं। भोजपुरी में एक धारा बनी के ओतना समर्थन ना मिलल।

दूसरकी धारा के मान्यता रहे कि भोजपुरी में बदलत समय के मोताबिक बदलाव होखे के चाहीं। एह धारा के विचार बा कि कुछेक विद्वान के आग्रह रहेला कि भोजपुरी जइसे बोलल जाला ओसही लिखलो जाव। बाकिर अइसन मान्यता भोजपुरी के हित में नइखे। एह बात के हरदम ध्यान राखें के चाहीं कि बोली आ भाषा में हमेशा अंतर रहेला। दुनिया में कवनो भाषा जइसन बोलल जाला ओइसन लिखल ना जाए। इहे बात भोजपुनियो के बा। भोजपुरी अब बोली नइखे रह गइल, खाली गीत-गवनई के भाषा तक सीमित नइखे। भोजपुरी विचार आ शास्त्र के भाषा बन चुकल बिया। डाॅ॰ रिपुसूदन श्रीवास्तव जइसन भोजपुरी के मर्मज्ञ विज्ञान, तैयब हुसैन ‘पीडि़त’, जइसन विद्वान ‘देरिदा’, ‘लयोतार’ जइसन वैश्विक विद्वान के सिद्वांत पर भोजपुरी के मूल्यांकन कइले बानी आ भोजपुरी देवनागरी लिपि कई मुट्ठी उपर उठा रहल बानी। भोजपुरी देवनागरी लिपि में लिखा रहल बिया तऽ ओकर कवनो अक्षर, संयुक्ताक्षर भा मात्रा के छोड़ल ठीक ना होई। एह में अभिव्यक्ति के कठिनाई होई।

व्याकरणिक दृष्टि से ‘मानकता’ भा मानकीकरण एगो सनत प्रक्रिया ह। अंग्रेजी भाषा के जनक ‘जेफरी चैसर’ के शुरूआती अंग्रेजी देखी आ आज के अंगे्रजी देखीं। 14वीं शताब्दी से 21वीं शताब्दी यानि 700 साल लाग गइल। अंग्रेजी के आपन रूप तय करे में एकर बादो ओकर हृदय के फलक लमहर बा। सभ भाषा के शब्द लेवे ला हरदम तैयार रहेला।

भोजपुरी साहित्य 1947 से खूब लिखात बा। गवे गवे ओकरा शब्द में आइल भदेसपन खतम भइल जात बा। तत्सम से, तद्भव से, देशज से विदेशज से शब्द लिहला में कवनो हरज नइखें। अउरी तऽ अउरी भोजपुरी जइसन भाषा पर वैश्विक उदारवादी व्याकरण, भूमण्डलीकरण के जवन जोर बा, जीवन शैली के बदलाव के असर बा, पलायन से भाषा के लेनदेन क जवन अन्तर बा, सांस्कृतिक विचलन, खानपान, मानसिकता में बदलाव के असर बा एह सभ के सहत भोजपुरी खडिआइल बाडी एकरा कम ना कहल जा सके।

कम्प्यूटर क इंटरनेट के आ संचार क्रांति के भोजपुरी के एकरूपता खातिर एगो वरदान बा। आजू भोजपुरी के कईगो वेबसाइट बा, ब्लाॅग बा, पत्र पत्रिका बा, आ सोशल मीडिया में भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, भोजपुरी जिनगी, आखर, अंजोरिया, भोजपुरिका के पेज बा जहवाँ संसार भर के भोजपुरी के नवका आ पुरनका पीढ़ी द्वारा साहित्य रचल जा रहल बा।

हिन्दी के बहुरंगी रूप केहू से छिपल बा का? इहो बतावे के पड़ी। हिन्दी विद्वान विशेषकर जे भोजपुरी भाषा क्षेत्र के बा उ पहिले इ तय करे कि भोजपुरी बोली ना एगो भाषा ? जइसे उदय नारायण सिंह, डाॅ॰ देवेन्द्र नाथ शर्मा, डाॅ॰ विश्वनाथ सिंह, डाॅ॰ राजेन्द्र प्रसाद सिंह, डाॅ॰ शुकदेव सिंह डाॅ॰ रामदेव त्रिपाठी, डाॅ॰ जयकान्त सिंह ‘जय’ आ डाॅ॰ रसिक बिहारी ओझा जइसन विद्वान भोजपुरी व्याकरण के संगे संगेे भाषा के मानकरूप बनावे के कोशिश कइले बानी सभे उहे भोजपुरी भाषा के मानक रूप तय करी संगे संगे भोजपुरी के लिखवइया आ पढवइयो।

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लेखक़ परिचय:-



पिता: डॉ गोरख प्रसाद मस्तना 
माता: श्री मती चिंता देवी
जन्म: 4 मार्च, 1974, बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार 
शिक्षा: रिसर्च स्कॉलर (भोजपुरी) विषय " भोजपुरी साहित्य के विकास में चंपारण के योगदान", 
एम ए (त्रय) (इंग्लिश, हिंदी भोजपुरी), एम फिल (इंग्लिश)
स्नातकोतर डिप्लोमा (अनुवाद, पत्रकारिता व जनसंच्रार), सिनिअर डिप्लोमा (गायन)
सम्प्रति: संपादक - भोजपुरी ज़िन्दगी, सह संपादक - पुर्वान्कूर, (हिंदी - भोजपुरी ), साहित्यिक संपादक - डिफेंडर (हिंदी- इंग्लिश- हिंदी), रियल वाच ( हिंदी), उपासना समय (हिंदी), 
भोजपुरी कविताएँ एम ए (भोजपुरी पाठ्यक्रम, जे पी विश्वविद्यालय ) में चयनित " भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह-संपादन - प्रो शत्रुघ्न कुमार 
सदस्य : भोजपुरी सर्टिफिकेट कोर्स निर्माण समिति, इग्नू, दिल्ली 
सदस्य: आयोंजन समिति - विश्व भोजपुरी सम्मलेन, दिल्ली, महासचिव - पूर्वांचल एकता मंच,
राष्ट्रीय संयोजक - इन्द्रप्रस्थ भोजपुरी परिषद् 
महासचिव - अखिल भारतीय भोजपुरी लेखक संघ, दिल्ली 
प्रचार मंत्री - अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन, पटना 
प्रकाशन: भोर भिनुसार (भोजपुरी काव्य संग्रह), शब्दों के छांह में (हिंदी काव्य संग्रह), Bhojpuri Dalit Literature- Problem in Historiography
प्रकाश्य: भोजपुरी आन्दोलन के विविध आयाम, भोजपुरी का संतमत- सरभंग सम्प्रदाय, Problem in translating Tagore's novel - The Home and The World, अदहन (भोजपुरी के नयी कविता)
अंक - 31 (9 जून 2015)
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