डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह से भेंट-वार्ता

भोजपुरी विश्व के सहायक संपादक श्री दिलीप कुमार के एगो भेंट-वार्ता डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह से भोजपुरी से जुड़ल बहुते बातन के सोझा ले आवत। का एकेर बरिआर चीझ बा तऽ काहाँ कमी बा ए सभ चीझन के सोझा ले आवे के कोसिस कईल गईल बा ए बात-चीत में।
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भोजपुरी के सुप्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह भोजपुरी भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अनेक काम कइले बानी। भोजपुरी-हिंदी-अंग्रेजी के पहिला त्रिभाषी शब्दकोश के भाषा- संपादक होखे के श्रेय डाॅ. सिंह के प्राप्त बा। भोजपुरी व्याकरण, भाषाशास्त्र, अनुवाद, शब्दकोश, वर्तनी सहित भोजपुरी भाषाविज्ञान से जुड़ल अनेक पुस्तक इहाँ के प्रकाशित बा। डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह आधुनिक भोजपुरी साहित्य में दलित-धारा के पहचान करेवाला पहिला आलोचक भी बानी। एहिजा प्रस्तुत बा उहाँ से भाषाविज्ञान के आईना में भोजपुरी भाषा पर युवा आलोचक-संपादक दिलीप कुमार से साक्षात्कार।,

प्र. भाषाविज्ञान, भोजपुरी भाषाविज्ञान आ व्याकरण के मूल अवधारणा रउआ पाठकन के सोझा स्पष्ट करे के कृपा करीं।

उ. भाषाविज्ञान के संबंध कवनो एक भाषा से ना होला। दुनिया के समस्त भाषा के विवेचनात्मक अध्ययन, विश्लेषण, ओकर उत्पत्ति आ विकास आउर एक-दोसरा सेे तुलना भाषाविज्ञान के अन्तर्गत आवेला। भोजपुरी भाषाविज्ञान तो एह वृहत भाषाविज्ञान के एगो हिस्सा भर भइल। एहिजे भोजपुरी व्याकरण के भी समझ लेवे के जरूरत बा। भोजपुरी व्याकरण एक प्रकार से भोजपुरी भाषाविज्ञान के पीछे-पीछे चलेला। कारण कि भोजपुरी भाषाविज्ञान प्रगतिवादी भाषाई विकास के भी लेखा-जोखा राखेला। व्याकरण प्राचीनवादी आउर रूढि़वादी होला। भोजपुरी व्याकरण में एह भाषा के सिर्फ शिष्ट आ परिष्कृत रूप दर्ज बा, जबकि भोजपुरी भाषाविज्ञान में एकर जीवित आ चालू रूप भी शामिल बा। व्याकरण कवनो भी भाषा के ताला में कैद राखेला, जबकि भाषाविज्ञान ओकरा के खुलल हवा में साँस लेवे के भी मौका देला। व्याकरण के ताला के लाख चैकसी के बावजूद भी भाषा के प्रवाह आम जनता के बीच बहत रहेला आ भाषाविज्ञान ओकर व्याख्या-विश्लेषण प्रस्तुत करत चलेला।

प्र. भाषाविज्ञान के लेके राउर केतना किताब प्रकाशित बा? एह में भोजपुरी भाषा के पुस्तकन के संख्या केतना होई?

उ. हिंदी में भाषाविषयक दूगो किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित बा- 1. भाषा का समाजशास्त्र (2003 ई.) 2. भारत में नाग परिवार की भाषाएँ (2006 ई.)। भोजपुरी भाषाशास्त्र पर कई गो किताब बा। पहिला किताब ‘‘भोजपुरी के भाषाशास्त्र’’ (भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना, 2006 ई.) में भोजपुरी भाषाविषयक कई गो लेख संगृहीत बाड़ेसन। एह पुस्तक के विस्तार-परिवर्द्धन ‘‘भोजपुरी के आधुनिक भाषाशास्त्र’’ (पुस्तक भवन, नई दिल्ली, 2011 ई.) में भइल बा। एह दूनो पुस्तकन के संपादन-अनुवाद में श्री जीतेन्द्र वर्मा के महत्वपूर्ण योगदान बा। हमार तिसरकी किताब ‘‘भोजपुरी व्याकरण, शब्दकोश आ अनुवाद के समस्या’’ (पुस्तक भवन, नई दिल्ली, 2008 ई.) ह। ई हमार एगो भाषण के संशोधित-परिवर्द्धित रूप ह। एही भाषण के सुनके कवि केदारनाथ सिंह हमरा के ‘‘भोजपुरी के पाणिनि’’ कहले रहीं। एकर अंग्रेजी अनुवाद ‘‘दि रिराइटिंग प्राब्लम्स आॅव भोजपुरी ग्रामर, डिक्शनरी एंड ट्रांसलेशन’’ (नवराज प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008 ई.) भी उपलब्ध बा। आधुनिक भोजपुरी साहित्य में दलित-धारा के रेखांकित करेवाली एगो पुस्तक ‘‘आधुनिक भोजपुरी के दलित कवि और काव्य’’ गौतम बुक सेंटर, दिल्ली से 2010 ई. में प्रकाशित बा। दू-तीन साल पहिले भोजपुरी भाषा आ व्याकरण पर ‘‘भोजपुरी भाषा, व्याकरण आ रचना’’ (विशाल पब्लिकेशन, पटना) नामक किताब प्रकाशित भइल बा। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से ‘‘भोजपुरी-हिंदी-इंगलिश लोक शब्दकोश‘‘ (2009 ई.) के संपादन कइले बानी। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में भोजपुरी भाषा विषयक कई गो पाठ भी लिखले बानी। भोजपुरी भाषाविज्ञान में आगे भी काम जारी बा।

प्र. रउरा विभिन्न विश्वविद्यालयन आ शैक्षिक संस्थान में भोजपुरी पाठ्यक्रम समिति के सदस्य रहल बानी। का भोजपुरी में उपलब्ध पुस्तक स्तरीयता के दृष्टि से पाठ्यक्रम के अनुकूल आसानी से मिल जाला?

उ. इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पाठ्यक्रम-निर्माण हमरा खातिर सर्वाधिक चुनौतिपूर्ण काम रहे। प्रो. शत्रुघ्न कुमार के देखरेख में भोजपुरी के कई गो विशेषज्ञ मिलके एह काम के संपन्न कइलन। पाठ्यक्रम के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पाठ्य-सामग्री के जरूरत पड़ल। अनुवाद, भाषा, वर्तनी, पत्रकारिता-सब पर पाठ्य-सामग्री लिखल गइल। एह से ओहिजा पहिले से प्रकाशित पुस्तक के जरूरत ना पड़ल। बाकिर वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा आउर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम-निर्माण के सिलसिला में हमरा एहसास भइल कि हिंदी, अंग्रेजी आदि में प्रकाशित कुछेक स्तरीय पुस्तकन के भोजपुरी में अनुवाद होखे के चाहीं। निश्चित रूप से भाषाशास्त्र आ आलोचना पर केंद्रित पुस्तकन के संख्या भोजपुरी में हिंदी वगैरह से कम बा। बाकिर अतना कम नइखे कि भोजपुरी साहित्य के पाठ्यक्रम बनावे में कवनो दिक्कत होखे। भोजपुरी में स्तरीय विद्वान आ किताब के कमी नइखे। प्रकाशक के कमी जरूर खटकेला। हमरा विश्वास बा कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होखला के बाद प्रकाशक लोग में भी भोजपुरी किताब छापे खातिर उत्साह जागी। भोजपुरी भाषा आ साहित्य के भविष्य उज्ज्वल बा।

प्र. भोजपुरी भाषा के प्राचीनता के संबंध में मोटा तौर पर पाठकन के प्रमाण देवे के कृपा कइल जाय। आम तौर पर सभ भषन के जननी संस्कृत भा वैदिक संस्कृत के बतावल जाला। तनी एकरा के फरिआ के बतावल जाय।

उ. संस्कृत के आर्यभाषा कहल जाला। आर्य लोगन से पहिले भारत में कई प्रजाति के लोग आइल। मिसाल के तौर पर नेग्रिटो, आस्ट्रिक, किरात, द्रविड़ आदि के गणना कइल जा सकेला। जाहिर बा कि भारत में आर्यभाषी लोगन से पहिले आर्येतर भाषी लोग रहत रहे। एह से साफ होत बा कि आर्यभाषा संस्कृत से आर्येतर भाषा भारत में पुरान बाड़ीसन। पुरालेख भी साबित करेला कि सिंधु घाटी सभ्यता के अभिलेख भारत में प्राप्त सब अभिलेखन में सबसे पुरान बाड़ेसन। आर्यभाषा के अभिलेखन में भी प्राकृत भाषा के अभिलेख संस्कृत से पुरान बाड़ेसन। संस्कृत के अभिलेख ईसा के बाद में मिलेला, जबकि प्राकृत के अभिलेख ओकरा से पहिले मिले लागेलसन। जहाँ तक भोजपुरी के प्राचीनता के बात बा तो हम दावा के साथ कह सकिला कि वैदिक संस्कृत में भी भोजपुरी के तत्व मौजूद बा। आके (आकर, 2.1.10), पराके (दूर भाग कर, ऋ. 7.100.5) जइसन वैदिक क्रिया रूप भोजपुरी भाषा के पूर्वकालिक क्रिया के आधार-स्तंभ बाड़ेसन।

प्र. सुने में आइल ह कि राउर पंचानबे भषन के एगो शब्दकोश जल्दिए प्रकाशित होखेवाला बा। का पाठकन के एह संबंध में कुछ बात बतावल चाहब?

उ. ‘‘पंचानवे भाषाओं का समेकित पर्याय शब्दकोश’’ (अमन प्रकाशन, रामबाग, कानपुर) तो बहुत पहिले 2009 ई. में छप गइल बा। एकर भूमिका भारत के सुप्रसिद्ध कोशकार अरविंद कुमार लिखले बानी। भारत में सबसे ज्यादा भाषा के शब्दकोश नरवणे साहब संपादित कइले बानी। एह शब्दकोश में उहाँ के 16 गो भाषा के लेले बानी। हम 20-30 साल से सोचत रही कि कई गो भाषा के शब्दकोश तैयार करीं। पहिले हम 16 गो भाषा जुटवनी, फेर 34 कइनी, बाद में 44, ओकरा बाद 77, कबो 80 भी भइल। अंत में हम 95 गो भाषा के शब्दकोश तैयार कर देनी। हमरा एह शब्दकोश में संयुक्त राष्ट्र संघ के सब भाषा के शामिल कइल गइल बा। एकरा अलावा भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल सब भाषा के भी जोड़ल गइल बा। जवन भाषा संविधान के आठवीं अनुसूची में नइखे जइसे भोजपुरी, मगही आदि, एकरो के एह शब्दकोश में शामिल कइल गइल बा। शब्दकोश के निर्माण आजीवन कारावास के सजा ह। एकरा के हम भोगनी। पत्नी शशिकला से एह काम में भरपूर सहयोग मिलल। हमार बच्ची सृष्टि, साक्षी आ श्रेया भी छोटे-छोटे हाथ से मदद कइलस।

प्र. रउरा माॅरिशस भी गइल बानी। ओहिजा भोजपुरी के का हाल बा?

उ. हम 2009 ई. में एक सप्ताह खातिर माॅरिशस सरकार के विशिष्ट अतिथि होके माॅरिशस गइल रहीं। माॅरिशस में भोजपुरी के संवैधानिक दर्जा प्राप्त बा। भारत में एकरा के अब तक ई दर्जा ना मिलल। ओहिजा भोजपुरी के कुछ पाठ्यसामग्री भी हमरा के देखावल गइल। ‘‘भोजपुरी के हीरा-मोती’’ नाम से कई भाग में ई पाठ्य-सामग्री उपलब्ध बा। एकर लेखक दिमलाला मोहित बाड़न आ भूमिका लेखक रामनाथ जीता बाड़े। श्री रामनाथ जीता के घर में हम एक रात अतिथि रह चुकल बानी। उहाँ के पत्नी बहुत सुन्दर भोजपुरी गीत गावेली। श्री रामनाथ जीता ओहिजा मंत्री रह चुकल बानी। जब हम माॅरिशस गइल रहीं, तब उहाँ के पुत्र राजेश जीता ओहिजा के शिक्षा-मंत्री रहले। एक दिन मोका में स्थित भोजपुरी विभाग में भी गइनी। भोजपुरी के दूगो प्रोफेसर ओहिजा नियुक्त रहले। ऊ लोग बतावल कि हमनी के एहिजा भोजपुरी के पढ़ाई अंग्रेजी में पढ़ाईना जा। ओहिजा हम आपन भोजपुरी शब्दकोश भी देखनी। प्रोफेसर लोग बतवले कि एहिजो भोजपुरी शब्दकोश के निर्माण हो रहल बा। राउर शब्दकोश से हमनी का एह में मदद ले रहल बानी जा।

प्र. भोजपुरी विस्तृत भूखण्ड के भाषा ह। लेखन आ पढ़ाई के दृष्टि से एह भाषा के मानकीकरण आ एकरूपता के संबंध में का होखे के चाहीं?

उ. कवनो भाषा खातिर ओकर मानकीकरण आ एकरूपता बहुत जरूरी चीज ह। हमार मान्यता ई बा कि संस्कृत के ऋ, ष, ज्ञ के भोजपुरी में रि, स, ग्य कभी ना लिखे के चाहीं। हिंदी के गर्म-गरम, गर्दन-गरदन आदि में से भोजपुरी के दोसरका रूप के अपनावे के चाहीं। भोजपुरी वर्तनी में क्ष, त्र, श्र के राखल भी जरूरी बा। भोजपुरी के विभक्ति चिन्ह संज्ञा शब्द में प्रातिपादिक से अलग लिखे के चाहीं, जइसे राम के आदि। सर्वनाम शब्द में हिंदी लेखा एकरा के प्रातिपादिक के साथे लिखे के चाहीं जइसे हमराके आदि। भोजपुरी वर्तनी के संबंध में बहुत कुछ हम आपन किताब ‘‘भोजपुरी के आधुनिक भाषाशास्त्र’’ में लिखले बानी। भोजपुरी प्रेमी लोग के निराश होखे के जरूरत नइखे। कवनो भी भाषा आ साहित्य सतत चालू रहेवाला कार्य ह। ई चलत रही। एक दिन भोजपुरी सिरमौर होई।
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साक्षात्कारकर्ता: दिलीप कुमार
सहसंपादक: भोजपुरी विश्व
(तिमाही), पटना
साभार: श्री संतोष पटेल जी
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