विकास - चन्द्रभूषण पाण्डेय

ई बहुत जरूरी बा कि साहित्य जेवन देस दुनिया में हो रहल बा ओके जस के तस सोझा ले आवे। चन्द्रभूषण पाण्डेय जी कऽ ई रचना कुछ ओईसने रचना बे जेवन आज के सच के सीसा में उतारत बे। सहमति-असहमति हो सकेला। हर चीझ कई गो रुप होला औरी ओही एगो रुप के चन्द्रभूषण जी रऊआँ सभ के सोझा ले आवत बाड़ीं। 
----------------------------------
एगो शब्द बा "विकास"। एह शब्द के कवनो शब्दकोश के शब्दावली में कुछुओ मतलब होखत होखे कवनो फरक न ईखे पडत। बाकी राजनीतिक शब्दावली में एकर मतलब होला "पुष्पक विमान"। ई ऊहे विमान ह जेकरा के द्वापर,त्रेता,भा सतयुग में मंत्र के बल प प्रकट करावल जात रहे आउर मंत्रे के बल प जी०पी०एस० मोड में डाल के जहवा मन करत रहे ओहीजे उतार लियात रहे भा चढा दियात रहे, बाकी दोसरा के छान्ही-खपडवा बचा के। विश्व भ के आदरणीय वैज्ञानिक लोग के रात-दिन भुखले पियासे मर-मर के "पुष्पक विमान"के परिकल्पना साकार करे के अभिलाषा पुरा होखे भा ना होखे, हमनी के राजनेता एकर परिकल्पना साकार कर लेले बाडे। यानी हमनी के राजनेता वैज्ञानिक लोगन से एक डेग ना बल्कि बीस डेग आगे हो ग ईल बाडे एह घरी।
द्वापर, त्रेता, भा सतयुग में भी "पुष्पक-विमान"के प्रतिउत्पत्ती खातिर यंत्र-तंत्र-मंत्र साधना करे के पडत रहे। आजो साधना जरुरी बा। ढेर लोग के साधना तरह-बेतरह होला -- कोई भैंस प उल्टा चढ के साधे ला त केहू भेड-बकरी नीअन हाक के,केहू चाह भा अण्डा बेचे प उतर के साधेला ,त केहू खदाने कीन के साधे ला,त केहू अफसर ई छोड-छाड के किरानी बाबू के ढर्रा प उतर के साधेला ।
अब भगवानो अजीबे लीला रच देले बाडे ओह 'विकास' नामक पुष्पक-विमान के जी०पी०एस०मोड आऊरी औटोमेटिक गीयर के रीमोट थम्हा देले बाडे हमनी के। हमनी के ठहरनी जा थारी के बैगन ढलान देखि के लोघंडा जाए के बा, एक आध गो कलौंजी बाडे जे ठटले रह रह जाले एके कोना। तबो हमनी के लोघंडावे खातिर एक से एक स्वागं रचा ला। बहुरूपिया लेखा कै गो भेष बदला ला। अब का क ईल जाव हमनीयो के ठहरनी जा आस्तीक समाज के निवासी भगवान के रुप भा नाम आवते कूल्ह बटाम सहित रिमोट चढा दिहीला जा आ फेकरबो करी ला जा कि "हर सामने वाला प तब तक भरोसा करे के चाहीं जब तक ऊ धोखा न ईखे दे देत"। आरे का भ ईल पाँच बरीस के वारेण्टी प बा फेर बाद में ओभरहाँलींग क ईल जाई।
हमरा त बुझाला कि जईसे भरत मुनि जी चारो वेद के परिष्कृत क के एगो नाट्य वेद के रचना क देनी ओसहीं ब्रिटिश मुनि जी पाँचो वेद के परिष्कृत क के "पुष्पक-विमानक-सह-विकास वेदक "के जनमा के चल देहनी। सभे अपना-अपना तरीका से बहुरूपिया निअन भेष धर के विकासवेदक विमान प सवार होखे के कोशिश करेला (एहीसे साँचो के बहुरूपिया लोग जवन ऐगो कला ह आज-काल्ह हमनी के समाज से विलुप्त गईल बा लोग आ उसे बहुरूपिया समाज पेट पोसे खातिर राजनेता बन ग ईल बा लोग।) कुछ लोग सफल हो जाला त केहू हबकुरिए भहरा जाला। ऐह विमान प चढे घरी भहरा गईला प ढोढी छूए के जरुरत ना पडे। काहे से कि लरिकाई में गिरला प छुअल जरुरी ह जवानी आ बुढारी के समय त प्रोजेस्ट्रौन हारमोन एकदम से बैलेन्स रहेला ,एहीसे एकर कवनो आवश्यकता ना पडे।
सभ राजनेता विकास प सवार होके आवेला लोग आ फेकर-फेकर चीकरे ला लोग कि देश चमकता, देश बढता, देश चढता आ हमनीयो के तोता ऊड, मैना ऊड, कौआ ऊड, भैंसिया ऊड आ ओही में धरा जाईला जा।
हमनी के एगो पीढी गुलामी में जनम लेके आजादी के समय कब्र में गोड लटक ईले बा, कुछ त चल देलन ऐही फेर में कि विकसवा कबो त पहुँची बाकी विकसवा उनके पहूची पकड के कामधेनू गाय लेखा वैतरणी पार करा देलस। रउवो सभे जान जाई कि विमान प चढे खातिर साधना बहुत जरुरी बा आ ओकरो से जरूरी बा "एकमेव जयते "के नारा।
ऐह विकास नामक पुष्पक-विमान प सवार जै गो होखस चलावे वाला पायलट ऐकेगो होखे ला आ सभे ऊहे वादी हो जाला। माजा त जे-जे अझुराई ओकरे भेटाई ।
"भुटानी काका" कहलन कि जनमनी तब्बे से विकसवा-विकसवा सुनते-सुनते कै जाना आपन जनमाई के नामे ध देलन "विकसवा"।
अब डर लागेला कि कवनो विकसवा के फेरौती खातिर उठा ना नु लेलनस अ कि आजु ले ना आईल। आतना दिन में त देह चाहे देश बेच के फेरौतियो दे के विकसवा के बोला लिआईत । हमनीयो के विकसवा आ जाईत आ फेरौतियो वाला गदगदाईल रहित। फेरु मुसुका के कहेलन कि "विकास" अब छियासठ बरिस के हो ग ईलन, अब चल होआई तबे नु आईहें। बरियार कान्हा के फेर में 'झींगा के टांग के बीच अझुराईल रहिहे'। कतनो फेकरब, आ कतनो रूप धरब अ 'विकास' ठाडा त होईहें प बालू के भीत लेखा भहरा ज ईहें। जैसे गंगा जी के कुल्ह पुल भरभरा के भहराऐ लागल लोगिन।
एने 'बुधुआ' अलगे रट्ट लगईले बा कि जान जाई मालिक विकास कतहूं ग ईल होईहें तब नु अईहें। आमदी सुतला के नु जगावेला, जागल के केहू आज तक जगा प ईले बा। केतनो फेकरला प जागल कबो ना जाग पईहें - कहते आ गावते बुधुआ निकल गईल बधारी-----------------
"विकसवा - विकसवा - विकसवा
तनी हमरो घरे अईहे रे विकसवा
दुअरा निहारी हम थाम्ह के आपन साँस
जाऐ के पहीले पुज ईहे हमार आशवा विकसवा
तनी हमरो घरे अईहे रे विकसवा"॥

----------------------------------------------------------------------------

लेखक परिचय:- 

नाम: चन्द्रभूषण पाण्डेय 
बिहार सरकार कऽ सेवक 
आरा, बिहार
अंक - 23 (14 अप्रैल 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.