मैना कऽ अठारहवाँ अंक आज रऊआँ सभ के सोझा पेस करत बानी। ए अंक में पाँच गो काब्य रचना सऽ। ई अंक रऊआँ सभ खाती।
- प्रभुनाथ उपाध्याय
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छोड़ि के कहां चललऽ घर दुवार
होई जाई सून सब गाँव जवार॥
जहाँ जात बाड़ऽ उहाँ, कुछू ना भेटाई
पर बिना तोहारा इहाँ होई अकाज।
जहिया तू कमइब तहिए बस खइब
सूतबऽऽ तऽ सूता पड़ी, होइब खराब॥
होई जाई सून सब गाँव जवार॥
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आदित्य दूबे
सादर परनाम ए बिग्यान के चमतकार
दुनिया घेराइल कम्प्यूटर इन्टरनेट में।
आ सगरो बिकास भाई- चारा के हरास भइल
प्रेम सदभाव गइल परसो के डेट में।
दुनिया घेराइल कम्प्यूटर इन्टरनेट में॥
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गिरिजा-कुमार!, करऽ दुखवा हमार पार;
ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी।
पढल-गुनल भूलि गइलऽ, समदल भेंड़ा भइलऽ;
सउदा बेसाहे में ठगइलऽ हो बाबूजी।
केइ अइसन जादू कइल, पागल तोहार मति भइल;
नेटी काटि के बेटी भसिअवलऽ हो बाबूजी।
रोपेया गिनाई लिहलऽ, पगहा धराई दिहलऽ;
चेरिया के छेरिया बनवलऽ हो बाबूजी।
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रात भर चान नभ में चमकते रहल,
केहू बेचैन करवट बदलते रहल।
रात ओकर मुकुर में निहारत कटल,
टेम दियना के काँपत सिसकते रहल।
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कहS तारे कि भोजपुरी भाखा हS कि बोली ..
भोजपुरिये दुहि दुहि खइल चुसाव जनि गोली ..
भोजपुरी ना अपनईत तS केहू ना तोहे चिन्हित ..
भांडी में लुकाईल रहित केहू नाहिं तोहे किनीत ...
भुला जनि भोजपुरीये तहारा रोटी के आधार हS ..
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(10 मार्च 2015)
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