जलज कुमार अनुपम के तीन गो कबिता

जलज जी अपनी कबिता में समाजिक औरी राजनैतिक सरोकार खोजे के कोसिस करत नजर आवत बाड़े। तीन गो कबिता परसतुत बाड़ी स। हम भारत के संविधान हईं भारत के लोकतंत्र जात्रा के बारे में कवि के आपन राय बा जेवन निमन औरी बाऊर दूनो पछ देखावत बा। ए कबिता के एहे मजबूती बा लेकिन कहीं कहीं कबिता ढील भी हो गइल बे। दूसरी कबिता हमार गाँव उ दौर में ले जाता जेवन गाँव में भी बहुत कम देखे के मिलता। तीसरी कबिता राजनीती निअर कठोर परन्तु बहुते बेवहारिक बिसय पर बे। हो सकेला कि बहुत लोग कबिता के उनकरी कथ्य औरी बिम्ब से सहमत ना होखे औरी ओकरा के कबिता में नकारात्मकता ढेर लऊक सकेला लेकिन इहो एगो सच बा जेवना से आँख ना फेरल जा सकेला। तीनो कबिता बढिया बनल बाड़ी सऽ।
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हम भारत के संविधान हईं

हम भारत के संविधान हईं
दुनिया के सबसे सुनर वेवस्था के बखान हई
अधिकार के दाता हई
इति हास के भी ईगो गाथा हई
बहुते साहस और क्षमता बाटे हमरा में
पर आज हम खुदे लाचार हई
हम भारत के संविधान हईं।

आज सब केहु कहेला की
हम हिंदुस्तान के आन बाण शान हई
हमरा न बुझाला की हम केकर पहचान हई
जे देहलक हमरा के जनम वो हमर दू गो नाम रखलक
पता न काहे वोह वेरा उ अपना धरती के इतिहास के ओरि ना तकलक
हमरे देशवा में गणतंत्र पैदा भइल रहे
फिरू हम दूसरा जगह से थोपल नक़ल के भरमार हई
पर आज हम खुदे लाचार हई
हम भारत के संविधान हई
कुछ लोग कहेला की खाली हम खादी अउरी गुलाब के दें हई
न बाबू ना हम अनगिनत बलिदानन के ढेर हई
केतना पुस्त खप गईल हमरा के लेआवेमे
हम उन सब के प्रतीक्षा के परिणाम हई
हम भारत के संविधान हई
जानत बानी हमरा पता बा की अब हम्मी रउरा सब के जिए के आधार हई
पर अ ब हमहि घूंट घूंट के जियत बानी
एक गो हमरा देह में कई गो रउरा सबन देह करत बानी
बहुत दर्द होला हमरा जब कहे लगवला हमरा दामनवा पे दाग
दुश्मन के बात छोड़ी न जी हम त अपने लोगन से बर्बाद हई
हम भारत के संविधान हई
जनता आज मौन बाटे समता खत्म बाटे
हमर गलत अर्थ लगा के
स्वार्थ खातिर हमरा के तोड़ के मोड़ के
झखम अभी भी हरा बाटे हमरा पे
हम मन मौजी बिपक्ष ता कभी
आपातकाल अउरी अध्यादेश हई
हम भारत के संविधान हई
गर जरुरत महशुस होखे त
हमरा में कुछ जोड़ी
अपना स्वारथ खातिर मत हमके तोड़ी अउरी मरोड़ी
हम राउरे आत्मसम्मान अउरी स्वाभिमान हई
हम भारत के संविधान हईं।
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हमार गांव

हमार गांव
गंडक के तिरा पर बसल
दखिन ओरी दियरा मे धसल
भोर मे पनघट पर जमघट
फ़ुलवारी मे देखला पे श्याम – राधा के खटख़ट
जहवा पे धुपो मे मिलेला छांव
हमार गांव।

चारु ओर जह्वा पे फैलल हरियाली
गीत गावेले जहां पे कोयलिया काली काली
सांझी खानी जहवा पे लागे ला चौपाल
सबसे सुनर सबसे निमन
हमार गांव।

केहु के लइका केहु के नानी
रोज सुनावल जाला जहा कहानी
तिज त्योहार मिल के मने जहवा
का राजा का रानी
भाई – भाई मे जहव न लगावे केहु दांव
हमार गांव।

मिट्टी जहां के बचपन के जान ह्वे
मिसरी औरी गुण जहां पानी से साथ के पह्चान हवे
राम – रहीम के मेल जह्वा सबके अरमान हवे
आजुवो सभ्यता नइखे बनल जहां शमशान
हमार गांव।

नित्य गोबर से लिपाला जहां आंगन
चुना औरी गेर से जहां बनल बाटे मांडन
उ विरहा उ कजरी उ होली के गीत
उ झिझिया उ सांझा उ तुलसी से प्रीत
आज भी उ इ देशवा के जान ह
हमार राउर तोहार सबकर प्रान ह
हमार गांव।

जहवा के मेलवा मे हजार गो झमेला
कभी पापा साथे त कभी जायी अकेला
जहां सावन के इयाद हरिहरका चुड़ी दिलावेला
उ बंशी के तान दिलवा मे प्रित जगावेला
जहां ईद अउरी होली सब केहु मनावेला
नौकरी , परीक्षा , सफलता ला
प्रसादी सब केहु चढावेला
जहां दोसरा के दुख तक्लिफ़ खतिर
लोग दे देला आपन जान
हमार गांव।
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आज के राजनीति

आजु के लफंगा नेता बनीहे काल्हु
कबो चारा कबो बेचीहे ई आलू
मत करिह कबो इनका परि
ई चीज हउए बड़का चालू।

आजकल देख के दृश्य राजनीती के
मनवा हमर बहुते पछताला
देखि के आजु हालत एक्नीके
गिरगिट अउरी जयचंद भी सरमाला।

आजु राजनीती एगो बन गईल बाटे धंधा
जेतना बढ़ी राउर ताकत ,जेतना होखेम रउरा ख़राब
ओतने मिली रउरा चंदा
बाटे रउरा सबन से एगो अनुरोध मत देखि जात पात
चुनी हरदम ईमानदार माँ भारती के बंदा
रोटी पैसा से आगे आगे आई
करी मुल्क के बात
मतदान सबसे जरुरी
बढ़िया चुनी छोड़ी जात – पात।

अइसन हरदम केहु के चुनी जे होखे
देशवा खातिर समर्पित
गर जरुरत आ जाये त
कर देवे समाज खातिर
आपन तन मन धन अर्पित
अइसन करी निर्माण की न हो घोटाला
जनता बने आला भ्रस्टाचार के मुह पे लगायी ताला
सब कुकर्मी जेल में जाओ
न फेरु पैदा होखे केहु
राजा कलमाड़ी अउरी चौटाला
रउरा आदमी के ना लोकतंत्र के जितायी
अपना अपना जात के ना
अपना अपना भाषा भाषी के ना
माँ भारती के पुतन के विजयी बनायीं। 
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लेखक परिचय:- 

दिल्ली
ई-मेल:- merichaupal@gmail.com

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