प्रभुनाथ उपाध्याय जी जिनिगी औरी समाज पर आपन कलम चलावे नी। उँहा के एगो कविता रउआँ सभे खाती.
----------------------------------
ई देंह हऽ माटी के
ई देंह हऽ माटी केहऽ सरीर ई पानी के बुला
हवे पर मगर ई रसगुल्ला।
ई देंह हऽ माटी के॥
ई तऽ हिमालय से हवे बाड़ा
हीरा जवाहरातो से भी काड़ा
एमे तूफानो से बेसी बल बा।
ई देंह हऽ माटी के॥
ई तऽ पानी से भी गल जाला
गोली के आगे भी अड़ि जाला
औरी जाने का-का करि जाला।
ई देंह हऽ माटी के॥
--------------------------------------------------------------------
अंक - 1 (11 मई 2014)
भैया आपका प्रयास बहुत नीक अ सराहनीय बा |आपके बहुत बहुत बधाई |अब हमहूँ भोजपुरी में थोड़ा बहुत लिखत बानी |
जवाब देंहटाएंनमस्कार भाई जी। बहुत बढिया बात ब कि रउओं लिखेनी। हो सके तऽ आपन लिखल भेजीं।
हटाएं