आज रऊआँ सभ के सोझा मैना के पहिलका अंक पेस कईला में बडा निक लागत बा। रऊआँ सभ के सहयोग से पहिलका अंक जेवना में खाली दू गो कबिता बाड़ी सऽ। धरीक्षण मिश्र जी कऽ 'साँंप के सुभाव' औरी प्रभुनाथ उपाध्याय जी कऽ 'ई देंह हऽ माटी के'। दूनू कबितान के बिसय औरी लिखावट के ढंग एकदम अलिगा-अलिगा बा। 'साँप के सुभाव' जहाँ समाज के बारे में बतियावत बे तऽ 'ई देंह हऽ माटी के' जिनगी के बारे में।
- प्रभुनाथ उपाध्याय
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वोट ना मिले त ई चैन से न बइठें कहीं
ओट बिना आठो घरी घूमते देखाले सन।
वोट मिलि जाला त ढेर-ढेर दिन तक ले
चुपचाप जाके कहीं परि के औंघाले सन।
दोसरा के बिल जोहि जोहि के गुजर करें
पास कइ के ओही में अपने मोटाले सन।
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ई देंह हऽ माटी के
हऽ सरीर ई पानी के बुला
हवे पर मगर ई रसगुल्ला।
ई देंह हऽ माटी के॥
ई तऽ हिमालय से हवे बाड़ा
हीरा जवाहरातो से भी काड़ा
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