झूठ के झउवा
ढोआता
लोर आखीं के
नाही पोंछाता
उनका हाथे जबले डोर
मासूमे पिसाता।
का का लिखीं
काहें लिखीं
कइसे लिखीं
चमचन के राज में
बिगड़ल साज में
न संगीते समाता।
राग कवन
साज कवन
बजनीहार कूल्हे नवहा
ताल बेताल संग
सुर ताल मिलल बा
कवन धुन गवाता।
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अंक - 70 (8 मार्च 2016)
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