गाँव हमरे - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

आपसी सनेह क सिंगार गाँव हमरे। 
उड़े लागल रंग आ गुलाल गाँव हमरे॥ 

राते अँखियो ना नींद, जबले आइल बसंत। 
दिने दिलवा बेचैन, याद आंवे हमरो कंत। 
संसियों मे होला मनुहार, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

जबले भइलें अंजोर, दिल भइल सहजोर। 
हर गलियन मे शोर, अब नाचे मन मोर। 
लागल थिरके गोरिया क पाँव, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

बढ़ल मसती के ज़ोर, फुलल सरसों चहूँओर। 
सगरों गोरिया विभोर, भइल होरिया के शोर। 
रूनक झुनक बाजेले पायल पाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

करे सभे केहु प्रयास, होई देश के विकास। 
फरी फुली हर समाज, बाटे सभका के आस। 
तब्बे आई अच्छे दिन के ठाँव, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 
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अंक - 72 (22 मार्च 2016)

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