बहुत गाँव देखनी
सहर देखनी
अखबार में
जाने केतने खबर देखनी
कि आदिमी हर जगह बा
रेलम-पेल
ठेलम-ठेल
कुछ काम में
बतकही में कुछ
अउरी ना जाने केतने सामान में
बाकिर आदिमी एगहू
ना मिलल हमके।
जब-जब चहनी
जब-जब खोजनी
तऽ बस एगो
दउड़त भागत दुनिया लउकल
हाड़ मांस में फंसल लउकल
जे जियरा के रंग ना जाने
ओखर के ना जे पहचाने
अउरी जाने जे
मंगरूआ के खूँटा के ऊ बान्ह के अपना के
बछरू जइसन कुद रहल बा।
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 81 (24 मई 2016)
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