बुढ़िया माई - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

१९७९ - १९८० के साल रहल होई, जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी। एगो लमहर इयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी, जवना के अगर केहु कबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई। साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी, जेकर लेखा ओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए। जात-धरम से परे उ दया के साक्षात देवी रहनी। सबका खाति उनका मन मे सनेह रहे, आउर छोट बच्चन खाति त उ सनेह के दरिया रहनी। लेकिन उनकर जीवन शुरुए से दुख दरद के लमहर बवंडर ले के आइल रहे। 

बुढ़िया माई के बचपन के नाम त राजेश्वरी रहल। उनकर नईहर खुसहाल आउर भरल पुरल रहे। बालपन त सबही के खुसी हंसी मे बीतिए जाला, उनकरो बीत गइल। फिर धीरे धीरे उनका बियाह के खाति लईका के खोज होखे लागल। उनका दुनो भाई, बाबू, चाचा-पीती लोग जी-जान से जुट गइल रहे। आखिर एक दिन लईको मिल गइल, पढल–लिखल नीमन संस्कारी परिवार से रहल उहो। खूब धूम-धाम से बरात आइल आउर उनकर बियाह हो गइल। लेकिन ओहि दिन से जइसे उनका सुख-चैन मे केहु के नजर लाग गइल। उ मरद जेकर उ मुहों ना देखले रहस, बियाहे के चार महीने के भीतरी देहांत हो गइल। ओहि दिन से उनका नइहर मे बिधवा के बस्तर पहिने के पड़ गइल। अपना मरद के सुख आउर साथ का होला, उनका भीरी जीए के एको पल नसीब न भइल।
एक त बिधवा लइकी ऊपर से नइहर मे रहल, गाँव जवार मे त बहुते शिकाइतके बात होला। उनकर भाई उनके ससुरारी जा के लइकी के बिदाई खाति निहोरा कइल लोग। बाकि आपन लइका खोइला क दरद आउर ऊपर से गाँव समाज मे होखे वाला खुसुर फुसुर से तंग उहो लोग हामी ना भरलस। थक-हार के बात पंचईती मे गइल, पंच लोग समहुत हो के ई निर्णय कइलस की बात के लइकी के ऊपर छोड़ दिआव, लइकी चाहे त दुनों परिवार मिल के दोसर बियाह करावे या फेरु ससुरारी जाइल चाहे त ससुरारी वाला लोग बिदा करा के ले जाव। वैधव्य आउर सुहागिन होए क चुनाव रहल, लेकिन ओकरे बादो उ बिधवा बन के रहल मंजूर कईली। बिधवापन के आपन किस्मत आउर ससुरारी के आपन करमभूमि मान के उ ससुरारी आ गइली। 
बुढ़िया माई अपना घरे यानि ससुरारी मे एगो बिधवा नीयन अइनी। ऊंहवा अइला के बाद सबका के आपन बानवे ला सगरी उताजोग कइनी आउर कामयाबों भइनी। घर के दशा संभारे खाति उनका कईयो गो निर्णय लेवे के परल। अपना साहस से उ हर लीहल निर्णय सफल बनवली। उनकर पहिलका निर्णय छोट देवर के बियाह करावल रहल। बुढ़िया माई घर मे सबसे बड़ रहली, से सभे केहु उनका से सलाह जरूर लेहस। उनका परयास से घर मे खुसी लवटल। देवरानी के साल भर मे बेटा क जनम भइल, खूब खुसी मनावल गइल, सोहर गवाइल, बायन बटाइल। आपन कुले गोतिया दयाद नेवतबों कईली। लेकिन बुढ़िया माई से बीपत के त जइसे चोली दामन के साथ रहे, बेटवा जब ४ बरीस के भइल तब उनकर देवरो साथ छोड़ गइलन। अब घरे मे दु गो बिधवा मेहरारू, एगो छोट बच्चा, एगो उनका सबसे छोटका देवर अइसन हालत मे अइला के बाद घर संहरल आउर मुसकिल हो जाला। बुढ़िया माई त सती नीयन जीवन जीयते रहनी, उनका देख उनकर सबसे छोटका देवरो भी जीवन भर बियाह न करे क ठान लीहने। 
बुढ़िया माई क समय के संगे संघर्ष जारी रहल। अब घर आउर बाहर, खेती बारी के कूल्ही जीमवारी दुनों लोग अपना अपना सीरे ले लीहलस। एह तरे जिनगी के गाड़ी आगे घसके लागल। बुढ़िया माई दिन रात लईका के परवरिस करे आउर घर सम्हारे मे लाग गइलिन, काहे से कि उनका देवरानी आपन मानसिक संतुलन अपना मरद के जईते खो चुकल रहनी। बुढ़िया माई ओह लईका पर आपन कुल्हे दुलार लूटा दिहली । अब उहे लईका पूरे घर खनदान के चिराग रहल। लईका के देख भाल आउर ओकर नीमन परवरिस दीहल बुढ़िया माई के जीवन के सार बन गइल। बुढ़िया माई ओहमे सफलों भइनी। समय क चकरी त कबों न रुकेला। धीरे धीरे उ लईका भी बियाह जोग हो गइल। बुढ़िया माई फेनु अपना के एगो नवकी जिमवारी खाति तइयार कइली। लडिका क बियाह भइल, बुढ़िया माई लडिका के माँई आउर बाबू दुनों के फरज निभवलीन। बहुरिया के नचिगो न बुझाये दिहनि कि उ आपन सासु ना बानी। उ त बहुरिया खाति सग महतारी से बढ़ के हो गइनी। 
धीरे धीरे समय बीतत रहे, बुढ़िया माई घर आउर बाहर के सागरी जिमवारी अपने सिरे ओढ़ लिहली, काहें से कि उनकर सबसे छोटकों देवर जवन ओह घरी अक्सरुआ सवांग रहलन, एगो दुर्घटना के चपेट मे आ गईलन। चलहूँ फिरे लायक भी नाही बचलन। ओहि घरी घर मे एगो नवका मेहमानो आवे वाला रहल। नियति के का मंजूर बा, ई कोई ना जनेला। नवका मेहमान बिटवा के रूप मे घर मे आइल। ई समाचार एक बेरी फेरु से घर मे गीत गवनई, सोहर, बायन के दिन लौटा दीहलस। लेकिन खाली दु–चार दिन खाति, पंचवे दिन उनका छोटकों देवर भी उनका साथ छोड़ गइलन। शायद इहों पल भी बुढ़िया माई के ओतना नाहीं दुखी कइलस, जेतना दुखी उ आपन जिनगी मे अपना देवर के एगो बात के मान लीहनी। उ घटना बुढ़िया माई के जीवन के अइसन घटना रहल जवना के उ कबों न भुला पवली। 
एक दिन अइसन भइल कि उनका देवर उनका के बोलवलन, आउर कहलन कि सुनत हऊ हमरे लगे कुछ रूपिया हवुए, एके तू आपन दिन रात खाति रख ला। कहे से कि हम अब कुछे दिन के मेहमान बानी, ई रूपिया तहरा काम आई। का पता बा कि जवने लडिका पतोह मे तू दिन रात एक कइले बालू, ओहनी के तोहरे बुढ़ाई मे तोहार सेवा टहल करिहन सन कि नाही। ई सुनते बुढ़िया माई रोवे लगलिन आउर उ अपने लडिका के बोलाय के कहनी कि ए बचवा सुनत हउवा, तोहार छोटका बाबू कुछ रूपिया रखले बाड़न, उ तोहरा से छुपा के हमरा के देवल चाहत बाड़न। सुना ए बचवा, एगो तिल्ली लिया के ओह रूपिया मे तू आगी लगा दे। हमरा के उ रूपिया ना चाही। अगर हमरा आपन ए लडिका के पाले पोसे मे कवनों कमी होखल होई, त ऊपर वाला एगो आउर दुख दे दी, लेकिन उहो हमरा खाति कम्मे होखी। उनकर ई बात सुनके ओह घरी घर मे मौजूद सभे कोई रोवे लागल। अइसन रहनी उ बुढ़िया माई। अजुओ ले उनकर कहल कूल्ही बातन के लछिमन रेखा नीयन उनका घर मे मानल जाला। धन्य रहनी उ बुढ़िया माई आउर धन्य बा ओह घर के लोग जिनका के देवी नीयन बुढ़िया माई के सँग मिलल।
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लेखक परिचय:-

नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 
मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 62 (12 जनवरी 2016)

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