अब राम जी रहेलन पलानी में,
जीय-जीय हो जवान,
बनी पलंग के पहलवान,
आग लागो तोहरी अइसन जवानी में।
दिन भर दारु-ताडी पियस,
सांझी के जा के लुकास चुहानी में,
जीय-जीय हो जवान,
आग लागो तोहरी अइसन जवानी में।
कहीं माई-बाप पुकारे, कहीं बहिनी करे पुकार
बाकिर मेहरी आगे सुनाय
ना तोहरा केहु के बानी,
ना जाने कहीया जागी तोहरो जवानी
कह कब ले रखबs आपन ,
तलवार लुका के मयानी में
जीय-जीय हो जवान,
आग लागो तोहरी अइसन जवानी में।
अपने त रहेलs महल-अटारी में
काहे रखले बाड़s राम जी के अबले पलानी में,
कर के देशवा खातिर कुछ बलिदान लिखवालs
तुंहु आपन नाम अमर कहानी में
जीय-जीय हो जवान,
आग लागो तोहरी अइसन जवानी में।
बीर रस सुने के तरसे कान सभकर
तु काहे फंसी गईल बाड़ तिरिया के बानी में,
जीय-जीय हो जवान,
आग लागो तोहरी अइसन जवानी में।
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लेखक परिचय:-
नाम: राम प्रकाश तिवारी
बेवसाय: सहायक प्राध्यापक,
टेक्निया इंस्टीट्युट ऑफ ऐडवांस्ड स्टडीज़
गाजियावाद (उ. प्र.)
अंक - 62 (12 जनवरी 2016)
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