जनम के उछाह में सोहर के सरसता - केशव मोहन पाण्डेय

लोक साहित्य कवनो संस्कृति से ढोवे वाला सबसे सहज माध्यम होला। बिना कवनो रोक-टोक आ बिना कवनो बान्हा के अलिखित रूप में कवनों समाज के जन-जीवन के सुन्नर आ सहज झाँकी लोकगीतन के माध्यम से प्रस्तुत होला। साँच बा कि लोकेगीत से लोक जीवन के साँस कायम रहेला। ई लोकगीत में अपना-अपना जवार के आपन-आपन पहिचान आ विशेषता के साथे जन-मानस में विद्यमान पावल जाता। एह लोकगीतन के चमत्कार त ईऽ होला कि खाली शब्दन के हेर-फेर से स्वरुप बदल जाला बाकिर भाव के ताकत ऊहे रहेला। लोकगीतन के गावल होखे चाहें सुनल, एहसे लोक जीवन के समृद्ध आ आनन्ददायक जीवन के सिरजना होखे लागेला। लोक-जीवन में लोकगीतन के माध्यम से परिवार, समाज, देश के सुख-दुख, जग-परोजन, दशा-दुर्दशा, पीड़ा-उछाह, जीअन-मरन, मेल-मिलाप, रिश्ता-नाता जइसन सगरो व्यक्तिगत आ व्यावहारिक पक्षन के साथे जिनगी के यात्रा में साथ निभावत रहेले। लोकगीतन से जीवन जीए के ढंगो आवेला, सीखो मिलेला आ आदर्शो स्थापित होला। 
जगत के शाश्वतता आ जीवन्तता जिनगीए के कारण बा। धरती पर जीव बाड़े त जिनगी में सगरो रंग बा। सनातन धर्म के मानी तऽ एह मानुष जीवन में सोलह गो संस्कारन के बात कहल जाला। हमनी के लोग जीवनो में ओह संस्कारन के बड़ा आदर बा। लोक-जीवन के सगरो आचार-विचार ओह संस्कारन से पे्ररित आ नियंत्रित भइला के साथहीं सजलो-सँवरल लागेला। ओह संस्कारन के पावन बेला पर मन एगो दोसरे उल्लास आ आनन्द से भर जाला। ओह उछाहन के व्यक्त करे में लोक-जीवन से सबसे ताकतवर आ सहेजे वाला गृहिणी लोग के आस्था, निष्ठा आ विश्वास सबसे अधिका रहेला। लोक-जीवन में संस्कारन से गुजरत हमरा-रउरा आ सबका घर के ईआ, नानी, माई, फुआ, बहीन, बेटी, सभे सबसे पहिले जुमेला लोग आ अपना कोकिल-कंठ से गीतन के वीणा बजा के स्वर के रस के बौछार से मन के आह्लाद व्यक्त करेला लोग। ऊ लोग अपना गीतन से जीवन के संस्कारन के अउरी रंजक बना देला लोग। संस्कारन से समाज अपना रीति-नीति के अनुसार संस्कारित होत रहेला। ओह अवसरन पर कुछ विशेष विधि-विधान, पूजा-पाठ कइल जाला, कुछ लोकाचार निभावल जाला। ई लोकाचार, ईऽ संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होत रहेला। ओह संस्कारन के अवसर पर गावल-बजावल, नाचल, स्वाँग भरल, हँसी-मजाक, छेड़छाड़ कइल जिनगी में अउरी रंग भर देला। 
सधवा नारी के गोद भरल रहे, ईहे भारतीय सोच के चरम परिणति होला। ओह गोद में बेटा खेलत रहे, एकर इच्छा तऽ आउओ व्याप्त बा। सगरो समाज में अधिकता में रहबो करेला। पुंसवन संस्कार के बाद जब घर में जन्म होला तऽ परिवार, जाति, बिरादरी, टोला, मोहल्ला में उमंग छा जाला। जनम के प्रसन्नता तब खाली बाप-महतारी के ना हो के सगरो परिवार के संगे सबके हो जाला। सामाजिक प्रसन्नता हो जाला। ओह अवसर पर जवन गीत आस-पड़ोस, घर परिवार के काकी-चाची, फुआ-दीदी गावे ला लोग, ओह के सोहर कहल जाला। सोहर के कतहूँ-कतहूँ मंगल भी कहल जाला। पुत्र के जनम लेहला पर बारह दिन, माने बरही ले ई गीत गावल जाला आ बालक के बरही के साथवे एकर समापन होला। सामान्य रूप से ओह सोहर के तीन गो रूप मिलेला - (1) देवता जगावन, (2) सोहर आ (3) खेलवना।
जब केहू के घरे बेटा के जनम होला तऽ दाई चाहे महरीन घर के बाहर निकल के फूलहा चाहे पितल के थरीया हँसुआ से बजावे लागेली। ओह थरिया के आवाज सगरो टोला-मोहल्ला में सबके कान में जा के एक बात के ऐलान करेला कि फलाने के घर में वंश के बढ़ोत्तरी हो गइल बा। कि ओकरा साथवे मानव-वंश के बढ़ोत्तरी हो गइल बा। ऊ थरिया बजावल सुन के आस-पड़ोस, घर परिवार के सगरो काकी-चाची, फुआ-दीदी जुम के देवता जगावे लागेली। ओह देवता जगावन के पित्तरो नेवतल कहल जाला। काकी-चाची, फुआ-दीदी अपना गीतन के माध्यम से अपना पिŸार माने पूर्वज लोग के नाम ले-ले के ई सूचना देला लोग कि देखीं लोगीन, हमनी के अपना गीत से ई शुभ सूचना देत बानी जा कि रउरा सभे के आत्मा के शांति बदे तर्पण करे वाला रउरा कुल में धरती पर जनम ले लेहले बाड़े। हे देवता लोग, हे पित्तर लोग, रउरा सभे ओह जनमतुआ के आगमन पर आनंदित हो के आशीष दीं लोगीन। ईहे सूचना देत गीत के गुँज सुनाए लागेला -
आवहू गोतिया रे आवहु गोतिन आरे...ऽऽ 
गाई के जगावहू 
शिवमुनि बाला कि
जनमे ले नाती नू होऽ। 
एगो दोसरा उदाहरण से सोहर के मंगल रूप के पता चल जाता। ऊ मंगल गीत बहुत हद ले देवता आ पित्तर लोग से सुनावत होला। देखीं ना, -
गावहू ए सखी गावहू
गाई के सुनावहू होऽ 
आरे, सब सखी मिली गावहू
आज मंगल गीत नु होऽ।। 
देवता जगवला के बाद पतरा में शुभ बेला देख के लगन निश्चित कइल जाला आ ओह निश्चित लगन पर सोहर गावल जाला। साँझे, राते, बिहाने चाहे दुपहरिया, कवनो बेरा मेहरारू कुल ‘सुतिका-गृह’ के दुआर पर बइठ के सोहर के अमरीत वर्षा से गाँव-जवार के साथे अपना संस्कारन के समृद्ध करे लागेला लोग। मेहरारू लोग सोहर गावे खातिर ‘सूतक-गृह’ के दुआर चाहें आस-पास के स्थान एह से चुनेना लोग कि गीतीया प्रसूता के साथवे नवजातो के कान में पड़े। एहके मानसिक मान्यता होला कि सोहर सुनला से जच्चा-बच्चा दूनो जने के स्वास्थ्य लाभ मिलेला। हमरा बुझाला कि भले स्वास्थ्य लाभ मिलत होखे चाहे ना, बाकी एही बहाने रोचक संगीत तऽ सुने के मिलबे करे ला। -
बाजन बाजे सत बाजन
नउबती बाजन होऽ
ऐ जी, राजा राम लीहले अवतार 
अयोध्या के मालिक होऽ।
बरही माने लइका जनमला के बारह दिन पर के कार्यक्रम। ओह दिन ले रोजो, कवनो बेरा, जबे साँस मिले, मेहरारू लोग जुम के सोहर गावेला लोग। आजुओ तऽ पुत्र-प्राप्ति उत्सवन के प्रधान मानल जाला। ओह अवसर पर पँवरिया लोग के गावल आ नाचल तऽ होखबे करे ला, जुमल मेहरारूओ लोग नाचे-गावेला लोग। एह अवसर पर नाचे-गावे के प्रथा आदि से चलत आ रहल बा। अपना रामायण में महर्षि वाल्मीकि जी राम जी के जनम पर अप्सरा लोग आ गंधर्वन के नाचे-गावे के बात लिखले बानी। ‘जगुः कल च गंधर्वाः ननृतुश्चाप्सरो गणाः।’ अपना ‘रघुवंशम्’ महाकाव्य में आदिकवि कालिदास जी भी लिखले बाड़े कि राजा दिलीप के महल में ‘अज’ के जनम लेहला पर वेश्या लोग नाचत-गावत बा। ‘सुखश्रवाः मंगलत्य्रनिस्वनाः प्रमोद नृत्यैः सह वारयोषिताम्’। ओही तरे बेटा जनमला पर अपनीहों गाँव-जवार में सुने के मिलेला। एगो फिल्म में प्रयोग भइल ई पारंपरिक गीत देखीं -
जुग जुग जियसु ललनवा, 
भवनवा के भाग जागल होऽ,
ललना, लाल होइहे, कुलवा के दीपक 
मनवा में आस लागल होऽ।
ई देखे के मिलेला कि सोहर में अधिकतर राम-कृष्ण के जनम से संबंधित गीत होखेला। सोहर गीतन में वण्र्य-विषय के विविधतो पावल जाला। कुछ सोहरन में महतारी ना बनला के टीस रहेला त कुछ में गर्भावस्था में कुछ विशेष खाए-पीए के अभिलाषा आ कुछ में पुत्र जनम के आह्लाद के साथही देवी-देवता के पूजा-पाठ के कथा-प्रसंग। ई सगरो सोहर के विविध रंग हऽ, जवना में बधाई सूचक सोहरे गावल जाला। ‘सोहर’ के उत्पत्ति जाहें जेऽ तरे भइल होखे, पुत्र के आगमन पर होखे वाला एह गीतन के छंदओ ‘सोहरे’ हऽ। सोहर गावे खातिर कवनो बाजा के जरुरत ना पड़ेला। एह खातिर ना ढोलक के थाप चाहीं, ना झाँझ के झोंझ रहेला। भोजपुरी के सोहर के बारे में विद्वान लोग के ई मत हऽ कि ऊ तुक आ नियम से परे होला। भाव व्यक्त करे खातिर बान्हा कइसन? भोजपुरी के सोहर कवनो पहाड़ी नदी जइसन स्वछंद आ धारदार होला। हमरा माई के ई पसंदीदा सोहर रहे। देखीं ना -
माथे मुकुट कृत कुण्डल
ओढले पीताम्बर होऽ
माई होऽ, 
बाँसुरी बजावत कृष्ण जनमे ले 
मोरा कोखी आवेले होऽ।।
सोहर के गीतन में संभोग शृंगार के वर्णन के सथवे आनन्द आ उल्लासो के अद्भुत वर्णन मिलेला। ओह गीतन में सद्यः माई बने वाली औरत के मन के गुदगुदावे वाला शब्दन आ गीतन के अधिकता होला। अइसनके गीतन के ‘खेलवना’ के नाम दिहल जाला। एह सोहरन में पति-पत्नी के संबंध में कबो-कबो पड़े वाला खटास के साथे देवर-भाभी के पावन संबंध के उजागर कइल जाला। एह तरे के अनेक बिम्बन के सिरिजना कऽ के अनगिनत सोहर भोजपुरी में गावल जाला। हम अइसहूँ अपना माई से बेर-बेर सोहर गवा-गवा के ओहके रिकार्ड क के आॅडियो रखले बानी, जवन अब खराब हो ता आऽ इर्ऽ लेख लिखत बेरा अंतर-मन से ईयाद आवता। माई के गावत सोहरन में कई गो ‘खेलवनो’ सुनले बानी। देखला पर मिलेला कि सोहर के विषय के विस्तार के तुलना में खेलवना में संक्षिप्तता रहेला। देखे के मिलेला कि एह खेलवना से नया उमीर के बहू-बेटी लोग के ज्ञान दिआला। खेलवना में लइका जनमला से घर में आइल खुशहाली, बधाई, नेग-चार आदि के सथवे ननद-भौजाई के हँसी-ठिठोली के मिश्रण रहेला। एगो उदाहरण देखीं -
बबुआ रुन मुन झुन मुन 
अंगना सोहावन अइले नाऽ
अपना बाबा के खरचा करावन अइले ना नाऽ।
अपना दादी के चोरिका लुटावन अइले नाऽ।।
सोहर में गुदगुदी के एगो दोसरो चित्र देखीं। एहसे पता चल जाता कि लोक जीवन में प्रकृति के बिना कवनो जग-परोजन, कवनो उछाह-अमरख के कल्पना नइखें हो सकत। -
चकवा जे पुछेले हुनहुन
कब होइहें झुनझुन
कब होइहें होऽ।।
सोहर गीतन में पति-पत्नी के रति-क्रीड़ा, गर्भाधान, गर्भिणी के शारीरिक बनावट, दोहद, प्रसव-पीड़ा, महरीन चाहें धगडि़न के बोलोवला से ले के पुत्र के जनमला ले के भी वर्णन होला। एकरा सथवे कई जगह ईहो वर्णन मिलेला कि प्रसव-पीड़ा के बेरा पत्नी अपना पति-परमेश्वर से दूर ना रहेके चाहे ले। राम-सीता के वर्णन पर आधारित ईऽ सोहर देखीं नाऽ -
राम चलेले रथ साजि के
केहू देखहूँ ना पावेला होऽ
अरे, सीता कहेली कर जोरि
हम रउरा साथे चलेब होऽ
ए साहेब,
अंतर-वेदना के ई बतिया
हम केकरा से कहेब होऽ।।
गर्भवती स्त्री जवन-जवन चीज के खाएके विशेष इच्छा व्यक्त करेले ओहके ‘दोहद’ कहल जाला। कालिदास जी स्पृहावती वस्तुः केषु मागधी में एकर वर्णन कइले बाड़े। अइसनका वर्णनन में ईहो मिलेला कि सुन्नर-बेटा के जनम देहला पर दोसरो औरत प्रसूता से ओहिसनके बेटा पावे के उपाय पूछेले। राम जइसन बेटा के देख के सुमित्रा पूछेली। देखीं -
हँसी-हँसी पुछेली सुमित्रा रानी
सुनहू बहिना कोसिला नु होऽ
ए बहिना
कवन-कवन व्रत कइलू
रमइया पुत्र पवलू नु होऽ।।
सोहर के गीतन में छेड़छाड़ आ गुदुरावे वाला गीतन के अधिकता भइला के साथवे छोट-मोट कथो-कहानी के वर्णन मिलेला। एह तरे के अनेक सोहर गीतन से भोजपुरी भाषा अउरी समृद्ध होले आ सथवे भोजपुरी के लोक-साहित्य के अमर धरोहरन में भी बढ़ोŸारी होला। बातचीत, कथा-कहानी परिवार के हर सदस्यन के सथवे पति-पत्नीयो के बीच देखे के मिलेला। देखीं ना -
पिया पीअर 
पिया पीअर के हमरो साध
पीअरिया हम चाहिले होऽ।
धनि नइहर
धनि नइहर लोचना भेजवाव
पीअरिया तुहूँ पहिर नू होऽ।।
बेटा जनमला पर ‘पँवरीया’ नाचेला लोग। ई पँवरीया अधिकतर मुसलमान होला लोग, जे भगवान राम के कथा के गा-गाके नाचेला लोग। अब तऽ पँवरीया लोग के नाच-गाना भरे मेटाऽ ताऽ बाकी जब ऊ लोग ढोलक पर कुकुही (एक तरे के बाजा) के मधुर संगीत से आपन राग मिला-मिला के गीत जब गावेला लोग तऽ मन में उछाह भर जाला। अपना गाँव-देहातन में, जहाँ सोहर के गीत आ पँवरीया के नाचन के प्रथा, भले दूबरे हालत में सही, जीअऽता, ओहिजा के रम्यता देखते बनेला। हम लइकाईं में अपनदा दुआर प पँवरीया लोग के नाचल-गावल देखले बानी आ ऊऽ चित्र आजुओ आँख में बसल बाऽ। सोहर गीतन में पँवरीया लोग के भी वर्णन मिलेला। एगो उदाहरण देखीं -
दुअरा पर नाचेला पँवरीया
तऽ अंगनवा कोतकवा नाचे होऽ,
आरे, ओबरी में नाचे ले ननदीया
तऽ होरीला कहि-कहि के होऽ।
आरे, दे दऽ भाभी अपने कंगनवा
ललन के बधइया लेबऽ होऽ।।
बधइया या नेग लेबे में फुआ सबसे आगे होली। फुआ, पँवरीया, महरीन, धंगडि़न आदि लोगन के नेग मँगला के वर्णन सोहर गीतन में भरपूर मिलेला। नेग माँगे के बेरा तऽ हर जनमतुआ राम-कृष्ण आ हर माई कोसिला-यशोदा हो जाला लोग। एगो धंगडि़न के नेग माँगला के वर्णन देखीं -
मचिया ही बइठल कोसिला रानी,
बड़की चउधराइन होऽ,
ए रानी, हम लेबो सोने के हँसुआ
त रुपवा के खापड़ी होऽ।
पहिरी ओढि धगडि़न ठार भइली,
चउतरा चढ़ी मनावेली होऽ 
आरे बंस बाढ़ों रे, फलाना राम के घरवा
बरिसे दिन हम आइब होऽ।।
लोक-जीवन के विडंबना देखीं कि जहाँ बेटा के जनमला पर उत्सव मनावल जाला, ऊहवें बेटी के जनमला पर विषाद फइल जाला। सोहर में कई जगह एकर वर्णन मिलेला कि महतारी कहेली कि जे तरे पुरइन के पतई बेयार के काँपेला होही तरे बेटी के जनमला पर हमार करेजा काँपऽता। कहल जाला कि एही कारने बेटी के जनमला पर सोहर ना गावल जाला। कई जगह बेटी-जनम के पीड़ा भी व्यक्त भइल बा। रउरो देखीं ना -
जेठ बइसखवा के पुरइन 
लहर-लहर करे एऽ,
आरे, ताहि कोखी धिअवा जनमली 
त पुरुख बेपछ परले एऽ। 
मइले ओढ़न, मइले डासन, 
कोदो चउरा पंथ भइले एऽ,
आरे, रेंडवा के जरेला पसंगिया, 
निनरियो नाहि आवेले एऽ।
स्त्री लोग के भाग्य पर अटूट विश्वास होला। ऊ जानेला लोग कि भगवान के जो कृपा होई तऽ कपार से बाँझिन नाम के कलंक मेटाऽ जाई। भोजपुरी सोहरन में भारी-से-भारी बिपतन में औरतन के धैर्य के रेखांकित कइल गइल बाऽ। कई जगह ई देखे के मिलेला कि अपने उमीर के औरतन के गोदी में नवजात के देख के दोसर औरत अपना संतानहीन भइला के व्यथा में आहत हो जाले। सोहर गीतन में तऽ बंध्या औरतन के दशा के अइसन वर्णन मिलेला कि पत्थरों के सीना के झँकझोर देलाऽ। ओह तरे के सोहर में सास के दुव्र्यवहारो के वर्णन मिलेला। एगो सोहर देखीं -
मचीआ बइठल मोरे सास,
सगरी गुन आगर हेऽ।
ए बहुअर,
उठऽ नाहीं पनीआ के जावहू
चुचुहिया एक बोलेले हेऽ।।
अपना बाँझपन से औरत एतना परेशान बिआ कि गंगा जी से जा के गोहार लगावत बिआ। एगो सोहर देखीं -
गंगाजी के ऊँच अररवा,
तेवइया एक रोलवे होऽ।
आरे गंगा, अपनी लहरिया हमके देतू तऽ 
हम डुबि मरि जइति होऽ।।
पुत्र के जनम पर देवता आ पूर्वज लोग के गोहराऽ के ओह लोग के धन्यवाद ज्ञापन कइल होखे चाहे आशीष देबे के कामना होखे, चाहे वंश-वृद्धि के चर्चा, ईऽ सब देवता जगावल कहाला। पुत्र के प्राप्ति के इच्छा रखे वाली औरत, गर्भ के वेदना से व्याकुल तरुणी, पतोह के मंगल कामना में लागल सास, दौड़-दौड़ के धंगडि़न बोलावे में व्यस्त पति देव, बेटा के जनमला पर धन-दौलत के नेग माँगे वाली महरीन, कूद-कूद के आपन उछाह लुटावत ननद आदि के वर्णन सोहर के गीतन में बहुते होला। नवजात के रोआई, माई के आनन्द, सास के प्रसन्नता आदि के वर्णन खेलवना के वण्र्य-विषय हऽ। एह सब के अलग-अलग कइल कठिन होला। कुल मिलाके देवता उठावन के बाद बेटा के जनम के पूर्व-पीठिका के वर्णन सोहर में होला तऽ उत्तर-पीठिका के वर्णन खेलवना में।
भले समाज में परिवर्तन होऽ ताऽ, लोक-जीवन भी संस्कारन के चादर के समय-समय पर धोऽ के साफ-सुथरा करे के चाह राखता, आ करतो बाऽ। दुनिया विकास के पाँख लगा के लंबा उड़ान भर रहल बिआ। दूरी काऽ कहाला, ई तऽ बुझाते नइखे। अब तऽ सगरो सफर एगो क्लिक पर निर्भर हो गइल बाऽ। समाज में परिवर्तन के सथवे नित नया-नया आंदोलन के जनम होता। आधी आबादी के विशेषण पर नारी-मुक्ति के बात कइल जाता। तबो सोचे वाला बात ई बाऽ कि आजुओ बेटा के जनम उछाह के संचार करे में कवनो कसर नइखे छोड़त। भले समय के साथ चलत लोग-जीवन में भी लइका के जनम के सोहर अब सूतक-गृह से चल के नर्सिंग होम के बेड पर चल गइल बा, तबो अभीन कईगो ईया-नानी, कईगो फुआ-काकी बाऽ लोग जे संस्कारन के जीअवले बाऽ लोग। ऊ लोग जानत बाऽ लोग कि अपना डुबत संस्कारन के बचा के ही अपना वैभवशाली संस्कृति के समृद्ध कइल जा सकल जाला आ ढोल-नगाड़ा वाला गोलबाजी से दूर अपना असली भोजपुरिया के परिचय दिहल जा सकल जाला। काहे कि कवनो लोक-जीवन के लोक-साहित्य ओह लोक-मानस के हृदय के अभिव्यक्ति होला। लोक-साहित्य लोक-मानस के भावना के सँचका दर्पण आ प्रतीक होला। तऽ सबके सोचे के चाहीं कि हमनी के कहाँ बानी जाऽ, काऽ करऽ तानी जाऽ आ काऽ करे के चाहीं।
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लेखक परिचय:-

2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन।
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख
दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित।
नाटक लेखन आ प्रस्तुति।
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित। 
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण
टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन 
अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना. 
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन.
संपर्क –
पता- तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र.
kmpandey76@gmail.com
अंक - 51 (27 अक्टूबर 2015)

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