कगो डेग चलेला रोज
मय ताकत लगाई के
बिगड़ल जाता तोहर रहन
केतना घिघियाइहन तोहार माई
लागता तोहरा बुझात नईखे॥
जिनगी के सुरुयतिए मे
फैशन के बेमारी घेरले बिया
खेत खरिहान कूल्हे भुलाइल
बबरी के झारल ,चस्मा चढ़ा के
लागता तोहरा सुझात नईखे॥
बढ़त महंगी मे बाबूजी
बिलबिलाइल बाड़न
बेटवा चुहाड़न मे
खुबे मस्ताइल बाड़न
लागता बाबूजी से कुछो क़हत नईखे॥
डेराताने उ दुनियादारी से
लाईकन पर भरोषा नाही बाचल
ना त संहतीयन पर
मनही मन घूंटत बाड़न दिन रात
भल कहा त उ बौरात नईखे॥
टुहटुहात दीयरी नियन
साहब बनवला के चाह
बुझा गइल
मुरझा गइल उनकर सपना
चुहनियों से उमेद देखात नईखे॥
पिछउड़े मुड़ला मे भलाई बा
मील के पत्थरो नपाइल बा
कठिन राह बाटे जरूर
पर असंभव कुछो ना
लागता घरे क नेहियो सोहात नईखे॥
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लेखक परिचय:-
नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र:
सी-39 ,सेक्टर – 3
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
अंक - 51 (27 अक्टूबर 2015)
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