कँवल से भँवरा विछुड़ल हो,
जहँ कोइ न हमार ।।1।।
भौंजल नदिया भयावन हो,
ना देखूँ नाव ना बेड़ा हो,
जहँ कोइ न हमार ।।1।।
भौंजल नदिया भयावन हो,
बिन जल कै धार ।।2।।
ना देखूँ नाव ना बेड़ा हो,
कैसे उतरब पार ।।3।।
सत्त की नैया सिर्जावल हो,
सुकिरत करि धार ।।4।।
गुरु के सबद की नहरिया हो,
खेइ उतरब पार ।।5।।
दास कबीर निरगुन गावल हो,
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