भेड़िया - डा उमेशजी ओझा

परसतुत कहानी भेड़िया डा उमेशजी ओझा जी के बढ़िया कहानीन में से एगो बे। ई कहानी प्रतीकात्मक बे औरी प्रतीक के सहारे आज के समाज में आइल भयानक सच के दर्शावत बे। अपना कहानी में उमेश जी बलात्कार के समस्या के बारे में लिखले बानी लेकिन प्रतीक के माध्यम से। उहाँ के एगो बलात्कारी के भेड़िया के प्रतीक के जरिए कहानी आगे बढ़वले बानी। कहानी में भेड़िया एगो बलात्कारी हऽ औरी दादी ई जानत बाड़ी लेकिन छोट लइकी के ई बात ना बता के खाली भेड़िया बातवत बाड़ी ताकी छोट मन पर डर ना बइठे। प्रतीक के माध्यम से वीभत्स साँच भी बिना केवनो डेरवावे वाला सबद के परियोग के कह जा सकेला इ कहानी के सबसे बढ़िया बात बा। कुल्ह मिला के लेखक अपनी बात के ढंग से कहले बाड़न औरी पाठक भी एके आसानी से समझ सकेला बिना बहुत परियास के।
-----------------------------------------------------------------------------------

एतवार के दिन, ऑफिस बंद रहे, हम बंदी के भरपूर आनंद उठावल चाहत रही। हम आपन पत्नी गीता के साथे सान्झिखे छत प लागल झुला प बैइठ के आलू के चिप्स आ चाय के आनंद लेत रही। तबही बगल में बईठल हमार प्रिये पत्नी गीता आसमान के निहारत एकदम से शांत हो गईल रही। आ हम आपन आफिस के बात लेके बकबक कईले जात रही। लेकिन हमार बात सुनेवाला जे कहा कोई रहे। जे भी रहे ऊ तऽ सुन कही आकाश में भुला गईल रहे। तबही बुझाईल कि हमार केहू बात नईखे सुनत। आ एके हाली हमार नजर गीता के ओरी गईल त देखनी कि गीता तऽ एकदमे आसमान के निहारत कही भुला गईल बाड़ी। एकरा प हम झुझुलात गीता के पकड़ी के जोर से झकझोर दिहनी।
“अरे ये भगवन कहा भुला गईल बाडू’’।
गीता धेयान टूटते कुछ सोचत, कही भुलाईल, कुछ ईयाद करऽत, बोलली, “जानत बानी, जब कबो अकेले बईठेनी त दादी के इयाद आवेला, तऽ उनका साथे हरदम भेड़िया भी ईयाद आ जाला. बाबूजी जब कबो छुट्टी में गाँव जइतऽन त उनका साथे हमहू सब भाई बहिन भी जात रही जा। दादी त खुद आँगन में सुतऽत रही आ हमनी के घरऽन में सुतावत रही। उनका ई बात के डर रहे कि कही कवनो भेड़िया घर के भीतर से लईकियन के उठा न ले जाव। हमहूँ जोश भरल अंदाज में कहत रही कि ‘दादी! भेड़िया जब उठाके ले जाई त का हमनी के नींद न खुलीऽ? हमनियो के लाठी से मारी-मारी के ओकरा के भगा ना देइब जा।’ बाकिर हमनी के पूरा भरोसा रहे कि भेड़िया के आवे के हाल में दादी के बोलावला के सिवा कुछू कर भी नईखी जा सकत। हमनी के दादी से कहीं जा कि दादी आपन हिम्मत और ताकत के मसहुर दादी अपनि हँसुआ से भेड़िया प हमला कऽ के ओकर गर्दन काट दिहें। ए बात प दादी धीरे से मुस्करा देस. बाकी दादी कबो-कबो हताश आ कबो-कबो विश्वास भरल भाव से कहस कि, “बेटा इहे फरक हऽ शेर अउर भेड़िया में। शेर आपन शिकार के शिकार लेखा झपटेला, आ भेड़िया ओकरा से पाहिले ईयारी करेला, ओकरा के गुद्गुदावेला आ हँसावेला। लोग कहेला कि भेड़िया के हंसत खेलत लईकी के खाए में मजा आवेला। येही से भेड़िया सुतल शिकार के दबे पाँव उठाके ले जाला कहीं दूर..............एकांत में। ओकरा के आपन पंजा आ गर्दन से पाहिले गुद्गुदावेला, फेरु जब ओकर शिकार बहुत खुबे खुश होक हँसे और खिखिलाये लागेला त ओकरा के आपन शिकार बनावेला।’’

हमनी के दादी के इ सऽभ बात कवनो पारी कथा निहन से भी ज्यादा रोमांचक लागत रहे। आ हमनी के कवनो दिन भेड़िया के आ जाए के कल्पना से पहिले खुश आ बाद में डेरा जात रही जा।

भेड़िया के नाम सुनिके तनी बड़ा अजीब लागल कि आखिर भेड़िया काहे भला ऊ लईकिये के आपन शिकार बनाई? हम दादी से धीरे से पूछनी कि दादी आखिर भेड़िया आदमी ह आ कवनो जनावर? ऊ कहली “अरे का पूछ देलू बबुनी? ऊ त देखे में एक दमे से आदमिये निहन लागेला, दुगो गोड, दुगो हाथ, बाकी राती में ओकर आखी खाली लाल बत्ती निहन बरेला। ऊ ओ घरी एक दम से जनावर हो जाला। आ जवना राती के ओकरा कवनो शिकार ना मिलेला त बड़ो आदमी के मुह नोच के भाग जाला। एही से ओकर नाम भेड़िया राखल बा”।

एक हाली हमनी के छुटी में घरे गईनी जा त अबकी हाली हमनी के जिद पकडनी जा दादी के साथे आगन में सुते के। अबकी हाली आँगन के भी नक्सा बदल गईल रहे। आँगन के घेरा के उचाई काफी बढ़ा दिहल गईल रहे। बड़ी जिद कईला के बाद दादी अपना साथे हमरा के लेके सुते के तेयार हो गईली। हम ख़ुशी से उछले लगनी कि आजू दादी के साथे आँगन में सुते के मिली। हमार भाईओ दादी के साथे सुते के बोले लागल। एह प दादी बोलऽली “अरे! तू त लईका हवऽ। तहरा कवन बात के डर बा। डर त बस लईकिये के बा। भेड़िया त खाली लईकिये सभ के ले जाला। जा तू दूआर प चाचा के साथे सूतऽ। जा।’’

रात हो गईल खाना-ओना खाके हम दादी के साथे सुते खातिर दादी के लगे गईनी। दादियो खाना खाके अईली आ खटिया प चढ़ऽते सुते से पाहिले एक गोड़ आपन आ एक गोड हमार एके साथे रस्सी से बान्हे लगली। हम चुप-चाप उनका के देखऽत रहीं। तबही दादी बोलली कि “का देखत बाड़ूऽ? बबुनी गोड हम एह से बान्हत बानी कि जब राती में भेड़िया आई आ तहरा के ले जाये लगी त हमार आँख खुल जाई आ हम ओकरा के आपन हंसुआ से मारी के भगा देब।” रात भर हम कुछ अनहोनी होखे के डर से बढ़िया से सूत ना पवनी आ दादी से कुछ कह भी ना सकऽत रही कि हम डेरात बानी। दोसरा दिन से आपन माई के साथे सुते लगनी। कुछ दिन गाँव में रहला के बाद बाबूजी के संगे शहर आ गईनी।

बाबूजी आ माई के भी कुछ दिन बाद डेराईल आ सहमल देखनी। हमनी के स्कूल के गरमी के छुट्टी भईल त हम भाई बहिन बड़ी खुश भईनी जा, कि अबकियो हाली गाँव जाएके मिली आ कुछ दिन दादी के साथे समय बितावे के मजा मिली। बाकिर एह बेरी ना त बाबूजी आ नाही माई गाँव जाएके नाम लेत रहे लो। जब छुट्टी ख़तम होखे के समय आ गईल त हम माई से पूछनी “माई! अबकी हाली हमनी के गाँव काहे ना गईनी हा जा”। माई कहली कि ‘’अबकी साल एगो भेड़िया आपन गाँव में घूस आईल रहऽल हा। आ ऊ गाँव के एगो लईकी सीमा के उठाके ले गईल हा आ ओकरा साथे खेलिके ओकरा के मारी के गाँव के खेत में फेक दिहलऽस हा।”

अतना सुनते हम त खुबे डेरा गईनी आ कहनी “चलऽ जवन होला तवन ठीके होला। बढ़िया भईल ह कि हमनी के गाँव ना गईनी जा। ना त कही हमरे के उठा ले जाईत त का करितीं?”

कुछ दिन बाद मालूल भईल कि शहरो में भेड़िया आ गईल बा। सुने में आईल कि स्कूल जात रहे एगो लईकी के भेड़िया उठा ले गईल आ ओकरा साथे खेली के ओकरा के मारी के फेक दिहलऽस। कुछ दिन बाद फेरु हल्ला भईल कि अब भेड़िया आपन मोहल्ला में भी आईल रहे आ राम भरोशाजी के लईकी रम्भा के उठा ले गईल आ ओकरा के मारी के फेक दिहलऽस। अब हमनी के घर से निकलऽल माई-बाबूजी बंद कर दिहनी। काँहे कि अब भेड़िया के संख्या दिन बऽ दिन बढ़त जात रहे। गाँव, शहर मोहल्ला तक आ गईल रहे भेड़िया। एक दिन पत्ता चलऽल कि उषा के घरे एगो भेड़िया रूपी रिश्तेदार आईल रहले आ उषा के साथे पाहिले आपन पंजा आ गरदन से खेली के गुद्गुदवले आ फेरु ओकरा के एगो जिन्दा रोबोट लेखा रहे खातिर छोड़ के भाग गईले। ई सभ सुनत-सुनत अब हमरो बुझाये लागल रहे कि आखिर दादी भेड़िया रूपी जनावर से अतना डेरात काहे रही। आ ओकर अतना भयानक रूप उजागर हमनी प काहे कईले रही।

अब त भेड़िया के चिन्हल बड़ा मुस्किल हो गईल रहे। ऊ त अब हर गाँव, शहर, मोहल्ला आ घरऽन में फईल चुकल रहे। अब हर केहू शक के नजर से देखल जात रहन। भेड़िया के शिकार लईकियन के तादाद बढल चली गईल। सोचत बानी कि आवे वाले दिन में लईकियन के संख्या कम मत हो जाय।

“साँचो गीता आजू भेड़िया के संख्या दिन ब दिन बढल जाता। लईकियन कमजोर होत जात बाड़ी। देखत बाडू ई सभ के बीच बड़ा परिवर्तन भी नजर आ रहल बा। भेड़िया के शिकार लईकी अब गाएब नईखी होत, बल्कि जिन्दा रोबोट बन जात बाडिस। चले फिरे आ काम करेवाली, बाहर से मजबूत आ भीतर से कमजोर लईकी।“

सब कुछ ठीक बा, वातावरण में हवा, पानी, माटी, के तरह भेड़िया के दहसत स्थाई होत जा रहल बा। शोध अबहियो चलत बा। भेड़िया के बढ़त जायेके, ओकरा से निपटे के आ भेड़िया के शिकार लईकियन के फेरु से आपस हँसत खेलत लईकी बनावेके।

-----------------------------------------------------------------------------------

लेखक परिचय:-

पत्रकारिता वर्ष १९९० से औरी झारखण्ड सरकार में कार्यरत
कईगो पत्रिकन में कहानी औरी लेख छपल बा
संपर्क:-
हो.न.-३९ डिमना बस्ती
डिमना रोड मानगो
पूर्वी सिंघ्भुम जमशेदपुर, झारखण्ड-८३१०१८
ई-मेल: kishenjiumesh@gmail.com
मोबाइल नं:- 9431347437

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.