१
गीत कवित हम का जानीं भइया
पानी बिनु बे पानी
जल, जंगल, जमीन से बेदखल
खोजत बानीं पानी
कहँवा गइल नदी सरोवर ?
ई बता दऽ भइया।
राज - पाट जेहि हाथ के दिहनीं
लूटे दूनों हाथे
पक्ष - विपक्ष अब रहल कहाँ जी
सब कुर्सी के साथे
कहँवा गइल सिद्धांत नीति ?
ई बता दऽ भइया।
धुरी विकास के तेजी से दउड़त
छिनि हाथ रोजगार
करजा लेके घीव पियत बा देश
घरे आ बइठल बाजार
कहँवा गइल लोक के नीति ?
ई बात दऽ भइया।
अन्न, पानी, दवाई सब महँगा
रोज नया बीमारी
सत्ता-सेठ के मेलजोल करत बा
लूटे के तैयारी
कहँवा गइल प्रतिरोधी क्षमता ?
ई बात दऽ भइया।
वादा रखऽ तू अपने पास में
ना गारंटी चाहीं
पेटवा के चाहीं रोटी भाई जी
हाथ के कमवा चाहीं
कहँवा गइल सुशासन वादा ?
ई बता दऽ भइया।
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२
नया जुग बा संचय लोलुप
लोकतंत्र बधिर
पूंजीवाद अधीर।
खूब बढ़ल आजु संसाधन
टेक्नोलॉजी भरपूर
दरकत लोकतंत्र के खंभा
सब केहू के कसूर
धन कुबेर राजनीति प हाबी
समय के तासीर
पूंजीवाद अधीर।
बाजारवाद के राहि में बनल
लोकतंत्र बा रोड़ा
काबू पावे खातिर ओह पर
अधिनायक के कोड़ा
आज्ञापालक परजा चाहीं
तानाशाह नाजिर
पूंजीवाद अधीर।
दक्षिणपंथ के ओरि रूझान
केहू एक ना दोषी
व्यक्ति विशेष निमित्त मात्र
बेवसथा सचहूं दोषी
लोकतंत्र पर काबू खातिर
चाहीं एक शातिर
पूंजीवाद अधीर।
धनकुबेर चाहेला हुकूमत
सब दिन अपना हाथे
पूंजी बल पर देश नियंत्रण
शासन के बल साधे
गाफा संसाधन बल आगे
लागे देश फकीर
पूंजीवाद अधीर।
( गाफा - गुगल, ऍपल, फेसबुक आ अमेजॉन )
आज जरूरत बा पूंजी के
बाहुबली अधिनायक
आवारा संसद बल साधे
साथ ले धर्म के नायक
मीडिया झूठा बात बघारे
सांच के आगे लकीर
पूंजीवाद अधीर।
दरक रहल आज लोकतंत्र
खतरा मे देश समाज
पूंजी आ संचार मिलल बा
सूनीं ओकर आगाज
शक्ति लोलुप पूंजी आ सत्ता
बना रहल तकदीर
पूंजीवाद अधीर।
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३
झोरा ढोवनीं बहुत दिन ले
कहाँ भेंटाइल माल
गुरुजी के चक्कर में भइया
रउवो बिगड़ल चाल
ए महराज! बूझीं ना बतिया
कबले कुटब झाल?
दिन रात संगहीं में रहनी
चढ़े मिलल ना मंच
पनही आ छाता ले ढोवनीं
ना बननी सरपंच
ए महराज ! कुछ अपनों सोचीं
कबले कुटब झाल?
गुरुजी चलस सफारी से भाई
उनकर गलिया लाल
गारी सुनत बितेला तोर दिन
साइकिल बाटे मोहाल
ए महराज! अबहूं त सुधरीं
कबले कुटब झाल?
ड्राई फ्रूट्स आ स्पंजी रसगुल्ला
गुरु के संग में नार
रउवा करम में भाई जी बतासा
राउर नार फरार
ए महराज! बजाईं अब ढोलक
कबले कुटब झाल?
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मैना: वर्ष - 11 अंक - 122 (फरवरी-मई 2024)
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