हमार बचपन लौटा दऽ - अशोक कुमार मिश्र

हे माई!
तनी फेरू एक बेर
अपना आंचर के छांव में तनी सुता दऽ
सुस्ताए दऽ। 

जीनगी के आपाधापी-घुड़दौड़ में
पहिलका अस्थान पावे खातिर
हकासल, पिआसल दऊर-दऊर के
बहुते थाकि गइल बानी।
हे माई !
एक बेर फेरू
हमरा के बचपन में पहुँचा दऽ॥

जवन भूला गइल बा
जिनगी के मेढ़ पर
दाबा गइल बा
आडम्बर के बोझा से।
हे माई ! 
एक बेर फेरू
हमरा के बचपन में पहुँचा दऽ॥

हमार उमंग-बेपरवाही
पता ना कहाँ भाग गइल;
हमार फिकिर छोड़ावऽ
तनी फेरू हमरा
माथा पर हाथ फेर दऽ।
हे माई !
एक बेर फेरू
हमरा के बचपन में पहुँचा दऽ॥
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लेखक परिचय:- 
अशोक कुमार मिश्र
प्राचार्य
डीएवी स्कूल, कैमोर
कटनी, म. प्र.

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