आ गईल बसंत - नूरैन अंसारी

सर्दी, ठिठुरन, कँपकँपी के बीतते तुरंत
ओस, पाला, शीतलहरी, के होते ही अंत
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत।

मोजर धइलस आम पर, गमके लागल फुलवारी
खेत सजल सरसों के, जईसे कौनो राजकुमारी।

झडे लागल पत्ता पुरनका, फूटे लागल नया कपोल
साँझ सबेरे सुने के मिले, कोयल के मीठे बोल।

जब बहे बयरिया पुरवईया, फसल खेत लहराय
देख के सफल मेहनत आपन,खेतिहर खूब अगराय।

जईसे साधना सफल भइला पर खुश होखस संत
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत।

चूमे माथा धरती के उगते किरिनिया भोर में
चादर हरियाली के पसरल गँउआ के चारू ओर में।

रतिया भी लागे सुहावन, निमन लागे धुप भी
हल्की ठंडी, हल्की गर्मी से बदलल मौसम के रूप भी।

खटिया में गुटीयाइल बुढऊ, खड़ा भईलेंन तन के
ये रंग-गुलाल के मौसम में, चहके चिरई मन के।

पंख लगा के इच्छा सबकर, उड़े चलल अनंत
झुमत, गावत, हंसत हँसावत आ गइल बसंत।
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नूरैन अंसारीलेखक परिचय:-
नाम: नूरैन अंसारी
नोएडा स्थित सॉफ्टवेयर कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर
मूल निवास :ग्राम: नवका सेमरा
पोस्ट: सेमरा बाजार
जिला : गोपालगंज (बिहार)
सम्पर्क नम्बर: 9911176564
ईमेल: noorain.ansari@gmail.com

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