देशवा के दिहलु वरदान - भोलानाथ गहमरी

देशवा के दिलहु वरदान, मइया भारती
देशवा के दिलहु वरदान ।

घर-घर में एकता के बहली बेयरिया,
उगेला लगनिया के चान।
सुरूज किरीन बनि जगली जवनिया
मटिया में जागेला, किसान मइया भारती।
देशवा के दिहलु वरदान।।

जिनगी में आजु काली रतिया सिराइल
चमकल बा नयका विहान
चमकेला हमरो अमर इतिहासवा
चमकी उठेला बलिदान, मइया भारती।
देशवा के दिहलु वरदान।।

ठावें-ठावें हमरो सजग बा सिपहिया
सजग बा सगरो सिवान
धरती के लजिया पर दगिया जे लागे
कोटि-कोटि जुझेला जवान मइया भारती।
देशवा के दिहलु वरदान।।

तोहसे जो माई केहू अंखिया देखाई
धरती मिलाइव आसमान
लागे नाहीं पइहें अँचरवा में दगिया
जब लगी घट में परान, मइया भारती।
देशवा के दिहलु वरदान।।
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लेखक परिचय:-
नाम: भोलानाथ गहमरी
जन्म: 19 दिसंबर 1923
मरन: 2000
जन्म थान: गहमर, गाजीपुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: बयार पुरवइया, अँजुरी भर मोती और लोक रागिनी

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