किसानों की होली

दुखी देश के संग, रंग हम कइसे खेली हों।टेक।

पहिने के कपड़ा अब नइखे, खाए के न अनाज
कउड़ी कउड़ी के हमनी का, तरसत बानी आज।

रंग हम कइसे खेली हों!
दिन पर दिन कर बढ़त जात बा, निकलत बा अब जान
दूध दही के दरसन दुरलभ-भइल आज भगवान।

रंग हम कइसे खेली हों!
हैजा जर पिलेक फइलल बा, कोने-कोने आज
कफ मलेरिया से पीड़ित बा, आज हमार समाज।

रंग हम कइसे खेली हों!
बाबू के घर पूआ पूरी, के होता सब साज
हमरा घर के लरिका रोवे, हाय!करी का आज।

रंग हम कइसे खेली हों!
रात-रात घर वाली हा! करे जाँत से जंग।
तबहूं नइखे मिलत पेट भर, मोट अन्न बजरंग।

रंग हम कइसे खेली हों!
कहां से हम कुरुता लाईं कहाँ से लाईं रंग
कहवां से धोती मंगवाईं और उड़ान भंग।

रंग हम कइसे खेली हों!
घर में कानी कउड़ी नइखे कनिया नइखे संग
नइखे अब ऊ आन बान सब भूल रंग बदरंग।

रंग हम कइसे खेली हों!
दुखी देश के संग रंग हम कइसे खेली हों।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.