देखत मौत के अब लजाइल का बानी - नागेन्द्र प्रसाद सिंह

देखत मौत के अब लजाइल का बानी
जो जाहीं के बा, त तवाइल का बानी।

करे के रहे जे, ऊ सब हो गइल बा
किनाने चहुँप के छछाइल का बानी।

बहुत दूर उड़लीं अकासे-पताले
करीं थिर मन के हहाइल का बानी।

बहुत दिन पटवलीं लगावल बगइचा
तजीं मोह-माया, सुखाइल का बानी।

जे बा मोटरी माथ पर ओके फेंकीं
करीं मन हलुक अब दबाइल का बानी।

हँकारत बा मउअत खड़ा हो दुआरे
दुबुक घर का भीतर लुकाइल का बानी।
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नागेन्द्र प्रसाद सिंह

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