हमार माटी - प. व्रतराज दुबे "विकल"

हवे धरती के सोना हमार माटी।
बादर जल ढारे आवे
सूरज आरती दिखावे
हउआ बेनिया डुलावे
जोन्ही झलरी लगावे
रात बिहंसे ले टिकुला लिलार साटी।
हवे धरती के सोना हमार माटी।

झरना झलवा बजावे
हरना आंख सुघरावे
कोइलर कीर्तन सुनावे
फुलवा खुसबू लुटावे
धूप जरजर के गमके बनल छांटी।
हवे धरती के सोना हमार माटी।

सजी भोग जहां भेंटे
केहू कबो ना चहेटे
दुखवा सेवा से मेटे
सुखवा घसिया पे लेटे
नेह निरखेला जहां टार-टार टाटी।
हवे धरती के सोना हमार माटी।।

ध्यान इहां जे लगावे
ग्यान अपने से आवे
वीर अइसन जनमावे
जे ना पीठिया दिखावे
जहां घर-घर बजेला विजय घांटी।
हवे धरती के सोना हमार माटी।

बन के मुदई जे आवे
पहिले ओके समुझावे
पाछे घनुहा उठावेले के तीर सरिआवे
इहां सोहेला सगरे धरम खांटी।
हवे धरती के सोना हमार माटी।।
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प. व्रतराज दुबे "विकल"


 





अंक - 112 (27 दिसम्बर 2016)

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