अभीन कतहूँ से दिवाली के उमंग कम नइखे भइल कि गोधन बाबा के कुटाए के दिन आ जाला। अभी ठीक से दिवाली के दिअरीओ नइखे बिनाइल। चारूओर पटाखा के बारूद के गंध फइलल बा। फाटल-जरल कागज अभी ठीक से बहराइलो नइखे। मोमबत्ती के जारन अभीन छोड़ावलो नइखे गइल। घर-दुआर, खान-पान सबमें अभीन तेल के बास बा। नवका कपड़ा के आकर्षएा अभी कम नइखे भइल। अभीन घर में मीठाई भरले बा कि बिहाने उठते दीदी खातिर भजकटेया जोहाये लागल।
गोधन-पूजा अपना भोजपुरिया समाज में एगो दोसरे रूप में प्रस्तुत होला। गोवर्धन के प्रतिकृति त कूटइबे करेला बाकिर ओह कूटइला के सथवे लगन देव जागेले। केहू के दुआर पर चाहे ईंनार के लगे गोबर के गोधन बाबा बनावल जाला। बनवला में एक-एक अंग के धेयान राखल जाला। पूरा के पूरा मानुष रूप। कई बेर ननद-भौजाई के नजर आ बातन में ठीठोलियों के कारन बन जाले। बाबा गोधन के मुड़ी पर एगो बड़का हँड़िया धरा जाला। मूसल के पूजा होला। गोधन के पूजा होला। अन्नकूट के रूप। बहिन के सराप के रूप। बहिनिया पहिले हीक भर सरापे ली सों। ऊ सरप सुन-सुन के हँसी आवेला। ओकरा पाछे के कथा हमरा के कई बेर माई सुनवले रहली। सरपला के बाद भजकटेया आ बइर से जीभ छेंद-छेंद के बहिना अशीष देला सों। आशीष से जइसे अमरीत के बरखा होला।
टोला-मुहल्ला के सभे बूढ़-पुरनिया से ले के माई-काकी, भौजी आ बहिन, सभे गोधन बाबा के कूटे पहुँचे ला। सबका खातिर एह पूजा के आपन-आपन महातम होला। सभे बिहअल लोग के सिंहोरा गोधन बाबा के लगे आवेला। सभे गोधन बाबा के जगावेला। गोधन बाबा के बहाने लगन देव के जगावेला। लगन जगला के बदवे भोजपुरी क्षेत्र में बिआह-शादी के काम-काज शुरु होला। लगन देव के जगवलो के एगो अद्भुत रूप रहेला। समवेत सुर में कोकिल-बैनी माई-काकी, ईया-दीदी गावे लागेला लोग -
भाई दूज के परंपरा के निबाह करत चारू ओर अपना-अपना ढंग से एह पर्व के मनावल जाला। एह अवसर पर गावे वाला गीतन में जहाँ भावात्मकता के बरसात होला, ऊँहवे आपसी राग के पुष्प-वाटिका ऊगेला। निस्वारथ ने हके गंगा में डुबकी लगावत मन लइकाईं में चल जाला। एह दृश्य के उकेरत चाहे फिल्मी गीत होखे, चाहे पारंपरिक, मन अनुरागी होइए जाला। देखीं ना -
टोला-मुहल्ला के सभे बूढ़-पुरनिया से ले के माई-काकी, भौजी आ बहिन, सभे गोधन बाबा के कूटे पहुँचे ला। सबका खातिर एह पूजा के आपन-आपन महातम होला। सभे बिहअल लोग के सिंहोरा गोधन बाबा के लगे आवेला। सभे गोधन बाबा के जगावेला। गोधन बाबा के बहाने लगन देव के जगावेला। लगन जगला के बदवे भोजपुरी क्षेत्र में बिआह-शादी के काम-काज शुरु होला। लगन देव के जगवलो के एगो अद्भुत रूप रहेला। समवेत सुर में कोकिल-बैनी माई-काकी, ईया-दीदी गावे लागेला लोग -
ऊठहू ये देव ऊठहू ये
सुुतले भइले छव मास
तहरा बिना ये देव तहरा बिना हे
तहरा बिना बारी ना बिअहल जास
बिअहल ससुरा ना जास।।
आज गोधन के दिने हमरो दीदीआ एही गीत के गा के गोधन कुटत होइहें - सुुतले भइले छव मास
तहरा बिना ये देव तहरा बिना हे
तहरा बिना बारी ना बिअहल जास
बिअहल ससुरा ना जास।।
आवरा कूटिले, भावरा कूटिले
कूटिले जम के दुआर
कूटिले भइया के दुसमन
आठो पहर दिन रात...
एह गीत में भोजपुरिया बहिन के प्रतिरोध के क्षमता के महसूस कइल जा सकत बा जे सीधे अपना भाई के दुसमन आ इहाँ तऽ कि साक्षात् जमराज के भी कूटे के चुनौती दे रहल बिया। एगो दोसर गीत देखीं-कूटिले जम के दुआर
कूटिले भइया के दुसमन
आठो पहर दिन रात...
गोधन बाबा चलले अहेरिया,
खिड़लिच बहिना देली आशीष
जीअसु हो मोरे भइया,
जीअ भइया लाख बरीस
भइया के बाढ़े सिर पगिया,
भउजी के बाढ़े सिर सेनुर हो ना।
गोधन के मूल उद्देश्य गऊ धन के बढंती आ काँट के निर्मूल नाश के साथवे भाई-बहिन के बीच अपनइत के स्नेह के वृद्धि कइल मानल जाला। गोबर से बनावल प्रतिकृति, रेंगनी आ कइर के काँट से सरापल, आशीष दिहल, बजड़ी खिआवल एह विचार के प्रमाणित करत बा।खिड़लिच बहिना देली आशीष
जीअसु हो मोरे भइया,
जीअ भइया लाख बरीस
भइया के बाढ़े सिर पगिया,
भउजी के बाढ़े सिर सेनुर हो ना।
भाई दूज के परंपरा के निबाह करत चारू ओर अपना-अपना ढंग से एह पर्व के मनावल जाला। एह अवसर पर गावे वाला गीतन में जहाँ भावात्मकता के बरसात होला, ऊँहवे आपसी राग के पुष्प-वाटिका ऊगेला। निस्वारथ ने हके गंगा में डुबकी लगावत मन लइकाईं में चल जाला। एह दृश्य के उकेरत चाहे फिल्मी गीत होखे, चाहे पारंपरिक, मन अनुरागी होइए जाला। देखीं ना -
रतन भइया के लाली घोड़िया
कि हाट-बाट दउड़ल जाय
पान खाइत मुँह बिहसत
नरियल फोरि-फोरि खाय।
अगर ई कहल जाव कि गोधन पूजा नया-पुरान सब रिश्तन के एगो पृष्ठ-भूमि देला त कतहूँ से झूठ ना होई। गोधन के बजड़ी से कमजोर हो के झरत संबंध अउरी कठोरता से जुड़ जाला त लगन देव के उठला के बाद नया-नया रिश्तन के बात होखे लागेला। बेटी-बहिन के बात होखे लागेला। खान-पान में नयापन आ जाला। नया अनाजन के स्वागत होखे लागेला। आईं ना, माई-बहिनी के साथे सभे मिल के भोजपुरी माटी के ऊर्वरा के समृद्ध कइल जाव। भोजपुरी संस्कृति के मान बढ़ावल जाव। भोजपुरी संस्कृति के प्रति नत हेखल जाव।कि हाट-बाट दउड़ल जाय
पान खाइत मुँह बिहसत
नरियल फोरि-फोरि खाय।
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लेखक परिचय:-
नाम - केशव मोहन पाण्डेय
2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन।
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख
दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित।
नाटक लेखन आ प्रस्तुति।
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित।
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण
टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन
अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना.
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन.
संपर्क –
पता- तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र.
kmpandey76@gmail.com
अंक - 104 (01 नवम्बर 2016) 2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन।
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख
दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित।
नाटक लेखन आ प्रस्तुति।
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित।
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण
टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन
अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना.
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन.
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kmpandey76@gmail.com
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