देश के जवान - कुंज बिहारी 'कुंजन'

का जवान भइलऽ हो बाबू
डहिअवलऽ ना गाँवा गाँई
न हाथे हथकडि़ये लागल
अब का फोन जवानी आई?
 
दूबर पातर बूढ़, अपाहिज,
भिखमंगन पर रोब जमा लऽ
भा कवनो मिल जाय अकेला-राही, 
तू ताकत अजमा लऽ
 
मूंगफली बालन के लूटऽ
चाय पकौड़ी लूट पाट लऽ
पइसा रेक्सा वाला मांगे
तवने के बघुआइ डाँट दऽ
 
खबरदार मत लैन लगइहऽ
कभी टिकट खातिर खिड़कीपर
धक्का दे के घुस जा आगे
कम बना लऽ बस झिड़की पर
 
कंडक्टर नौकर वेचारा
भाड़ा माँगे, मारि गिरा दऽ
शीशा खिड़की तूर तार के
बस में चाहे आग धरा दऽ
 
चैन खींचि गाड़ी बिलमा दऽ
डेगे डेगे फाल फाल में।
मू जाये रस्ते में रोगी
पँहुचत पंहुचत अस्पताल में॥
 
बाकिर एगो डाँकू आके
झूठो के पिस्तौल छुआ दे
मउगिन के नंगा कर दे,
लइकन के लोहू से नहवा दे,
 
चट् से पोछ दबा के तूंहू
दे दऽ आपन आबा काबा।
मत बोलऽ हो बाबू
चाहे, लुटा जाय डब्बाके डब्बा॥
 
शाबास बीर जवान देश के
साँचो गजब जवानी बाटे
तहरे पर नूं कुंअर सिंह
राणा प्रताप के पानी बाटे॥
 
कुंजन के कवाद कर दऽ
बाबू! जइसे चले, चलावऽ
राम कृष्ण के माटी के
माटी कर दऽ भा माथ चढ़ावऽ॥
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लेखक परिचय:-

नाम:कुंज बिहारी 'कुंजन'
जनम: 20 जनवरी 1920
निधन: 16 जून 1985
जनम थान: गढ़नोखा, रोहतास, बिहार



अंक - 97 (13 सितम्बर 2016)

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