गुहार - भारतेन्दु हरिश्चंद्र

लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो।
सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥

लहँगा दुपट्टा नीको न लागै।
मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।

वै गोरिन हम रंग सँवलिया।
नदिया प बँगला छवाय नाहीं देत्यो॥

सरसों का उबटन हम ना लगइबे।
साबुन से देहियाँ मलाय नाहीं देत्यो॥

डोली मियाना प कब लग डोलौं।
घोड़वा प काठी कसाय नाहीं देत्यो॥

कब लग बैठीं काढ़े घुँघटवा।
मेला तमासा जाये नाहीं देत्यो॥

लीक पुरानी कब लग पीटों।
नई रीत-रसम चलाय नाहीं देत्यो॥

गोबर से ना लीपब-पोतब।
चूना से भितिया पोताय नाहीं देत्यों॥

खुसलिया छदमी ननकू हन काँ।
विलायत काँ काहे पठाय नाहीं देत्यो॥

धन दौलत के कारन बलमा।
समुंदर में बजरा छोड़ाय नाहीं देत्यो॥

बहुत दिनाँ लग खटिया तोड़िन।
हिंदुन काँ काहे जगाय नाहीं देत्यो॥

दरस बिना जिय तरसत हमरा।
कैसर का काहे देखाय नाहीं देत्यो॥

‘हिज्रप्रिया’ तोरे पैयाँ परत है।
‘पंचा’ में एहका छपाय नाहीं देत्यो॥।
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लेखक परिचय:-

नाम: भारतेन्दु हरिश्चंद्र
जनम: भोजपुरी सितम्बर 1850
जनम थान: बनारस, उत्तर प्रदेश
निधन: 6 जनवरी 1885
भाखा: हिन्दी अउरी भोजपुरी
विधा: नाटक, कबिता, निबन्ध आदि
परमुख रचना: भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी आदि
अंक - 97 (13 सितम्बर 2016)

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