सुराज (एक) - जगदीश ओझा ‘सुन्दर’

सगरी बिपतिया के, गाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना, पहाड़ भइलि जिनिगी।

आग जरे मनवा में, धधकेले सँसिया
असरा में धुआँ उठे, परान चढ़ल फँसिया
देहि के जरौना बा, भाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना, पहाड़ भइलि जिनिगी।

केहू माँगे घूस, केहू माँगे नजराना
केहू माँगे सूदि मूरि, केहू मेहनताना
कुकुर भइले जुलुमी-जन, हाड़ भइलि जिनिगी।
नदी भइल नैना, पहाड़ भइलि जिनिगी।
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जगदीश ओझा ‘सुन्दर’
अंक - 94 (23 अगस्त 2016)

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