बूझो पंडित ब्रह्म गियानम, गोरष बोलै जाण सुजानम।
बीज बिन निसपती मूल बिन विरषा पान फूल बिन फलिया,
बाँझ केरा बालूड़ा प्यंगुला तरवरि चढ़िया।
गगन बिन चन्द्र्म ब्रह्मांड बिन सूरं झूझ बिन रचिया धानम,
ए परमारथ जे नर जाणे ता घटि चरम गियानम।
सुनि न अस्थूल ल्यंग नहीं पूजा धुनि बिन अनहद गाजै,
बाडी बिन पुहुप पुहुप बिन सामर पवन बिन भृंगा छाजै।
राह बिनि गिलिया अगनि बिन जलिया अंबर बिन जलहर भरिया,
यहु परमारथ कहौ हो पंडित रुग जुग स्याम अथरबन पढिया।
ससमवेद सोहं प्रकासं धरती गगन न आदं,
गंग जमुन विच षेले गोरष गुरु मछिन्द्र प्रसादं।।
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बीज बिन निसपती मूल बिन विरषा पान फूल बिन फलिया,
बाँझ केरा बालूड़ा प्यंगुला तरवरि चढ़िया।
गगन बिन चन्द्र्म ब्रह्मांड बिन सूरं झूझ बिन रचिया धानम,
ए परमारथ जे नर जाणे ता घटि चरम गियानम।
सुनि न अस्थूल ल्यंग नहीं पूजा धुनि बिन अनहद गाजै,
बाडी बिन पुहुप पुहुप बिन सामर पवन बिन भृंगा छाजै।
राह बिनि गिलिया अगनि बिन जलिया अंबर बिन जलहर भरिया,
यहु परमारथ कहौ हो पंडित रुग जुग स्याम अथरबन पढिया।
ससमवेद सोहं प्रकासं धरती गगन न आदं,
गंग जमुन विच षेले गोरष गुरु मछिन्द्र प्रसादं।।
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